जिस जगह + चिन्ह बना है वहाँ कॉमेट होना चाहिए था. |
शताब्दी के पुच्छल तारे के रूप में प्रस्तावित कॉमेट ISON का सूर्य के साथ बहुप्रशिक्षित मुलाक़ात २८ नवम्बर २०१३ को हुआ जब वह हमारे सितारे से बेहद नजदीक पंहुचा. इस मुलाक़ात का इंतज़ार महीनों से पूरी दुनिया के अंतरिक्ष विज्ञान प्रेमी कर रहे थे. शौकिया अंतरिक्ष अन्वेषकों के साथ दुनिया के प्रसिद्ध अंतरिक्ष संस्थान और अन्तरिक्ष यान भी इसका लगातार अवलोकन कर रहे थे. मैं भी रात को उठ-उठ कर आसमान को निहार रहा था कि शायद यह कॉमेट सूर्य से मुलाक़ात के बाद चमकदार होकर दिख जाए परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ.
वैसे अभी पूरी तरह से निश्चित नहीं है परन्तु शायद यह सूर्य के साथ इस समीपस्थ मुलाकात का सामना नहीं कर पाया और शायद मृत हो गया है. नासा की सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेसंस ऑब्जर्वेटरी और सोहो दोनों ही की नजर में कॉमेट बेहद धुंधला हो चूका है. वहीँ नासा के सोलर डायनामिक्स ऑब्जर्वेटरी में कॉमेट बिलकुल भी दृश्य नहीं है.
सभी चित्रों में केवल सूर्य ही नजर आ रहा है. जब कॉमेट की खोज हुयी तो यह माना जा रहा था कि इसका नाभिक ५ किलोमीटर का है परन्तु जैसे जैसे अध्ययन होते गए तब इस बात की पुष्टि हुयी कि नाभिक केवल २ किलोमीटर का था, इसलिए वैज्ञानिकों को आशंका है कि यह सूर्य से इतने नजदीकी का सामना न कर सका हो और शायद सूर्य के ज्वारीय बल से टूटकर अति तीव्र उष्मा के कारण वाष्पीकृत हो गया हो.
अगर ऐसा है तो आने वाले दिनों में इसका खुली आँखों से आकाश में दिखने की उम्मीद लगाये लोग निराश ही होंगे. परन्तु अन्तरिक्ष के रहस्य कोई नहीं जानता, फिलहाल तो सभी अनुसंधान केंद्र यह पता लगाने की कोशिश में हैं कि आखिर कॉमेट गया कहाँ. क्या वाकई इसके करोड़ों वर्ष लम्बे जीवन और सफ़र का अंत हो गया. वक्त ही शायद इस रहस्य से पर्दा उठा पाए. परन्तु इसके अध्ययन से प्राप्त जानकारी इन रहस्यमय पिंडों के बारे में हमारे ज्ञान को अवश्य परिष्कृत करेगी, यह निश्चित है.
वैसे अभी पूरी तरह से निश्चित नहीं है परन्तु शायद यह सूर्य के साथ इस समीपस्थ मुलाकात का सामना नहीं कर पाया और शायद मृत हो गया है. नासा की सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेसंस ऑब्जर्वेटरी और सोहो दोनों ही की नजर में कॉमेट बेहद धुंधला हो चूका है. वहीँ नासा के सोलर डायनामिक्स ऑब्जर्वेटरी में कॉमेट बिलकुल भी दृश्य नहीं है.
सभी चित्रों में केवल सूर्य ही नजर आ रहा है. जब कॉमेट की खोज हुयी तो यह माना जा रहा था कि इसका नाभिक ५ किलोमीटर का है परन्तु जैसे जैसे अध्ययन होते गए तब इस बात की पुष्टि हुयी कि नाभिक केवल २ किलोमीटर का था, इसलिए वैज्ञानिकों को आशंका है कि यह सूर्य से इतने नजदीकी का सामना न कर सका हो और शायद सूर्य के ज्वारीय बल से टूटकर अति तीव्र उष्मा के कारण वाष्पीकृत हो गया हो.
अगर ऐसा है तो आने वाले दिनों में इसका खुली आँखों से आकाश में दिखने की उम्मीद लगाये लोग निराश ही होंगे. परन्तु अन्तरिक्ष के रहस्य कोई नहीं जानता, फिलहाल तो सभी अनुसंधान केंद्र यह पता लगाने की कोशिश में हैं कि आखिर कॉमेट गया कहाँ. क्या वाकई इसके करोड़ों वर्ष लम्बे जीवन और सफ़र का अंत हो गया. वक्त ही शायद इस रहस्य से पर्दा उठा पाए. परन्तु इसके अध्ययन से प्राप्त जानकारी इन रहस्यमय पिंडों के बारे में हमारे ज्ञान को अवश्य परिष्कृत करेगी, यह निश्चित है.
dhanyawaad anupam ji....:) waise mere khyaal se ye comet to gaya kaam se.....:)
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