Saturday, February 20, 2021

सतीश धवन उपग्रह (SD SAT) - पहला भारतीय निजी उपग्रह

अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में चेन्नई में स्थित स्पेसकिड्ज इंडिया (SpaceKidz India) नामक कंपनी बहुत जल्द भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र के महान व्यक्तित्व सतीश धवन के नाम पर आधारित एक नैनो (बहुत ही छोटा) उपग्रह सतीश धवन सैट या SD SAT अन्तरिक्ष में भेजने वाली है. इस उपग्रह का वजन मात्र 3.5 किलोग्राम है.


इस अभियान की सबसे ख़ास बात है की इसमें एक विशेष चिप लगायी गयी है जिसमें 25 हजार भारतीय लोगों के नाम संग्रहित हैं. विदेशों में विशेषकर नासा के अभियानों में यह परंपरा सी रही है. इसके अलावा इस उपग्रह के साथ श्रीमदभागवतगीता की एक छोटी प्रति, प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी जी का नाम और चित्र तथा उनके द्वारा कोरोना काल में प्रसिद्द किये गए 'मिशन आत्मनिर्भर' शब्द को शीर्ष पैनल पर स्थापित किया गया है. 




पूर्ण रूप से भारत में निर्मित यह निजी उपग्रह छात्रों में अन्तरिक्ष के प्रति रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से भेजा जा रहा है. जिन लोगों के नाम अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे उन्हें बोर्डिंग पास भी दिया जाएगा. इस उपग्रह का प्रक्षेपण भारतीय अन्तरिक्ष संस्थान इसरो अपने विश्वसनीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान 'पीएसएलवी सी-51' से करेगा. इसके साथ दो अन्य निजी उपग्रहों भी रवाना होंगे. 

स्पेसकिड्ज इंडिया की संस्थापक और सीईओ डॉ श्रीमति केसन को इस नैनो सैटेलाइट को लेकर काफी उत्‍साह है. यह अंतरिक्ष में तैनात होने वाला कंपनी का पहला उपग्रह होगा. 

Sunday, January 31, 2021

पाँच ग्रहों वाले तारे (HD 108236) की दुर्लभ खोज - सेंटौरस तारासमूह में

असीम और अनंत ब्रम्हाण्ड में खरबों या शायद उससे भी ज्यादा तारे होंगे. अपने आकार, ऊर्जा, परिक्रमा और जीवन की अवस्थाओं में विभिन्नता के साथ ये सभी तारे अपनी आकाशगंगाओं को प्रदीप्त कर रहे हैं. इन तारों में से बहुत से तारे अपनी विशेषताओं में हमारे सूर्य की तरह हैं, जो हमारे खगोलविदों को आकर्षित करते हैं. ग्रहों से परिपूर्ण ये तारक-ग्रह प्रणाली हमें ऐसी जानकारी देने की उम्मीद जगाते हैं जिससे वैज्ञानिकों को ग्रहों के निर्माण के बारे में बेहतर तौर पर पता चल सकता है. 

HD 108236 तारा और उसका परिवार 
ठीक ऐसे ही एक तारा और उसका परिवार वैज्ञानिकों ने हमसे 211 प्रकाशवर्ष दूर खोज निकाला है. HD 108236 नामक यह नक्षत्र सेंटौरस (Centaurus) तारासमूह में स्थित है. इसे अलग-अलग नामों जैसे TOI-1233, TIC 260647166, और HIP 60689 से भी जाना जाता है. हमारे सूर्य से मिलते इस तारे के परिवार में पांच ग्रह हैं जो इसका चक्कर लगा रहे हैं. प्राप्त आकंड़ों की गणना के मुताबिक यह सूर्य से 12 प्रतिशत छोटा है और उसका भार भी 13 प्रतिशत कम है.

2020 में नासा के ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) की मदद से  इस तारे के चार बड़े ग्रहों की खोज हुई थी. इसका सबसे आंतरिक ग्रह HD 108236b एक गर्म सुपर अर्थ की श्रेणी में आता है. इसका व्यास हमारी पृथ्वी का 1.6 गुना है. यह ग्रह अपने तारे का केवल 3.9 दिन में ही एक चक्कर लगा लेता है जिसकी वजह से यह अपनी सौर प्रणाली का सबसे गर्म ग्रह है. इसका तापमान 826 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

नासा का ट्रांजिटिंग एक्सोप्लैनेट सर्वे सैटेलाइट (TESS) उपग्रह 


इसके अलावा शेष तीन बड़े ग्रह बाह्य ग्रह हैं जिनके नाम क्रमशः HD 108236c, HD 108236d HD और 108236e  हैं. ये तीनों ही नेप्च्यून के जैसे गैसीय दानव ग्रह हैं. ये ग्रह क्रमशः अपने तारे के 6. 2 दिन, 14.2 दिन और 19.6 दिन में एक चक्कर लगाते हैं. की अगुआई में यह शोध जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में प्रकाशित होने  जा रहा है.

बाद में किये गए अध्ययन में इस प्रणाली में एक और ग्रह का पता चला जिसका भर प्रथ्वी के भार का दोगुना है.HD 108236f नाम का यह ग्रह तारे का एक चक्कर 29.5 दिनों में लगा लेता है. इस पांचवे ग्रह की खोज के साथ या ऐसा तीसरा सौर परिवार हो गया है जिसमें पांच या अधिक ग्रह हैं.

ऑस्ट्रियन एकेडमी और साइंसेस के स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ एंड्रिया बोनफेंटी, जो इस शोध दल के प्रमुख हैं उनके अनुसार, “टेस के मापन से पता चला कि अंदर वाला ग्रह त्रिज्या के गैप में आता है. जबकि तीन बड़े बाहरी ग्रह गैसीय आवरणों वाले ग्रहों की तरह हैं इससे इस सिस्टम का अध्ययन वायुमंडलीय विकास के शोध के लिहाज से बहुत उपयोगी हो सकता है.”

Tuesday, January 26, 2021

भारतीय उपग्रह एस्ट्रोसैट (Astrosat) ने खोजा दुर्लभ तारों का समूह

 


गत वर्ष सितम्बर में भारत ने अन्तरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में लम्बी छलांग लगाते हुये अपना पहला बहु-तरंगदैधर्य अंतरिक्ष उपग्रह (Multi-Wavelength Space Satellite) स्थापित किया था. इस उपग्रह का नाम एस्ट्रोसैट (Astrosat) रखा गया है. इस एस्ट्रोसैट की सहायता से हमारे खगोलविदों ने हमारी आकाशगंगा में गोलाकार तारासमूह की खोज की है. इस वृहद् तारापुंज को वैज्ञानिक जगत में ‘ब्रह्माण्ड के डायनासोर’ की उपाधि दी गयी है.

 

अन्तरिक्ष विभाग की जानकारी के अनुसार इस तारा समूह में बड़ी संख्या में ऐसे तारे हैं जो गर्म पराबैंगनी विकिरण के साथ चमकते हैं. ऐसे तारे ब्रम्हाण्ड में बहुत कम ही देखे गए हैं. इस गोलाकार तारापुंज में ऐसे करीब 34 पराबैंगनी चमकीले तारे खोजे गए हैं.  वैज्ञानिकों के दल ने इन तारों के सतह के तापमान, चमक जैसे गुणों का पता लगाया. इन तारों का केंद्र पूरी तरह से खुला हुआ है और इसके कारण ही ये बहुत गर्म बन गए हैं. ये तारे सूर्य जैसे तारों के अंतिम अवस्था में हैं.

ऐसे तारपुंज खगोलविदों के लिए विशेष प्रयोगशाला मानी जाती हैं क्योंकि ऐसे पुंजों में जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के तारे एक साथ अध्ययन हेतु उपलब्ध होते हैं. जहाँ कुछ तारे अभी अपने शैशवकाल में हैं तो कुछ अंतिम अवस्था में.

एस्ट्रोसैट से प्राप्त आंकड़ों और चित्रों को भारत के विज्ञान और तकनीकी विभाग के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के खगोलविदों ने गहरा अध्ययन किया और गर्म पराबैंगनी चमकीले तारों को तुलनात्मक रूप से ठंडे लाल दानव तारों और अन्य अवस्थाओं के तारों से अलग किया. शोधकर्ता दल के वैज्ञानिक श्री सुब्रमण्यम के अनुसार पराबैंगनी चमकीले तारों में से एक हमारे सूर्य से 3000 गुना ज्यादा चमकीला है तथा उसकी सतह का तापमान एक लाख केल्विन है.

अध्ययन में पाया गया कि प्राप्त गर्म पराबैंगनी विकिरण वाले तारों में ज्यादातर तारों में बाहरी परत नहीं के बराबर होती है और वे जीवन की अंतिम प्रमुख उपगामी दैत्याकार अवस्था या एसिम्प्टोटिक जायंट अवस्था से नहीं गुजरते बल्कि सीधे ही सफेद बौने तारे बन जाते हैं.

Sunday, December 13, 2020

आर्टेमिस I (Artemis I ) - चाँद पर प्रथम महिला अन्तरिक्ष यात्री (2024)

रात्रि-आकाश को अपनी सुन्दरता से सुशोभित करने वाला हमारा चाँद

Artemis Mission Logo
विगत कुछ वर्षों से अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का प्रिय बना हुआ है और लगातार चन्द्र-अभियानों का एक रोचक सिलसिला चल पड़ा है, परन्तु चाँद पर मानव भेजने का अभियान दशकों से रुका हुआ है. परन्तु जल्द ही अमेरिकी अन्तरिक्ष संस्थान नासा वर्ष 2024 के लिए प्रस्तावित ओरियन क्रू यान में दो मानवों को चाँद पर उतारने की तैयारी में लगा हुआ है. इस अभियान का नाम आर्टेमिस (Artemis) – I रखा गया है. 

इस अभियान का नामकरण भी दिलचस्प है. नासा का अपोलो अभियान चन्द्रमा के अन्वेषण को समर्पित था और चाँद की धरती पर पहला कदम भी रखने वाले नील आर्मस्ट्रोंग और उनके साथी एडविन ‘बज़’ एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस भी अपोलो-11 में गए थे. इसलिए दशकों बाद शुरू इस अभियान का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में वर्णित अपोलो की जुड़वाँ बहन आर्टेमिस (Artemis) के नाम पर ही रखा गया है.  

आर्टेमिस अन्तरिक्ष यान - चन्द्रमा के पास अपनी कक्षा में 
प्रथम आर्टेमिस अभियान के लिए नासा ने 18 अंतरिक्ष यात्रियों की सूची तैयार की है जिसमें नौ पुरुष और नौ महिलाएं हैं. भारत में इसकी विशेष चर्चा इसलिए भी है क्योंकि इन पुरुषों में से एक भारतीय मूल के राजा जॉन वुर्पूतूर चारी या राजा चारी भी शामिल हैं. राजा चारी भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक हैं जो वायुसेना में कर्नल हैं. 43 वर्ष के राजाचारी अमेरिका के एयर फोर्स एकेडमी, MIT  और यूएस नेवल टेस्ट पायलट स्कूल से ग्रेजुएट हैं. वैसे इस सूची में से केवल एक पुरुष और एक महिला को ही चुना जाएगा. आर्टिमिस मिशन के बाद इस दशक के अंत में मानव की अंतरिक्ष में लंबे समय तक उपस्थिति के लिए अभियान चलाए जाएंगे. नासा की योजना तो मंगल पर इंसान भेजने की भी जो अन्तरिक्ष अन्वेषण को बदल कर रख देगी. 

आर्टेमिस अभियान के लिए चयनित 24 अन्तरिक्ष यात्री (इनमें से  केवल 1 पुरुष और 1 महिला ही जायेंगे)
आर्टेमिस अभियान की एक खास बात यह भी है कि पहली बार कोई महिला चाँद की धरती पर कदम रखेगी. महिलाओं ने अपनी शक्ति अन्तरिक्ष के क्षेत्र में शिद्दत से दर्ज कराई हैं परन्तु यह सफलता इतिहास में स्वर्णिम अध्याय होगा. 


Friday, December 11, 2020

बृहस्पति और शनि का अनोखा मिलन - 400 वर्ष बाद

अन्तरिक्ष में घटित अनोखी घटनाओं की श्रृंखला में इस वर्ष 21 दिसम्बर की रात्रि को बृहस्पति और शनि के आभासी मिलन की घटना इन दिनों चर्चा में है. यहाँ हमें यह जानना आवश्यक है की सौरमंडल के ये दोनों विशालकाय गैसीय दानव ग्रह एक-दूसरे से औसतन करीब 40 करोड़ मील या 65 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर हैं और 21 दिसम्बर को 397 वर्ष बाद होने वाली (खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार इससे पहले 1623 ईस्वी में यह अद्भुत नजारा दिखा था) इस दुर्लभ घटना में भी ये दूरी लगभग बनी रहेगी. फिर इस चर्चा का क्या अर्थ है कि दोनों दानवी ग्रह पास आयेंगे. 



इस घटना का अर्थ है की आकाश में ये दोनों गृह एक दुसरे से केवल 0.1 अंश के अंतर में दिखेंगे. इनके बीच की वास्तविक दूरी में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होगा परन्तु ये अपनी कक्षाओं में इस स्थिति में होंगे की पृथ्वी से ये लगभग एक सीध में दिखाई देंगे. यह भी अनुमान हैं कि संभवतः ये इतने चमकीले हों कि ये दो अलग ग्रह एक तारे के सदृश्य दिखाई देवें. इसलिए विश्व में अनेक लोग इसे क्रिसमस का विंटर स्टार (शीत ऋतू का सितारा) भी कहकर पुकार रहे हैं. 


इस तरह की खगोलीय घटना को अन्तरिक्ष विज्ञानी 'ग्रहों के संयोजन' के नाम से पुकारते हैं लेकिन शनि और बृहस्पति के इस तरह के करीबी मिलन को वे 'महासंयोजन या ग्रेट कंजंक्शन' कहते हैं. ऐसा इसलिए है कि अन्य पड़ोसी ग्रहों की तुलना में बृहस्पति और शनि का यह मिलन दुर्लभा है और लगभग 400 वर्ष के बाद घटित हो रहा है. वैसे अगला महासंयोजन 60 साल बाद 15 मार्च 2080 को पुनः होगा. यहाँ यह भी जानना आवश्यक है कि प्रत्येक 20 वर्ष में शनि और बृहस्पति एक-दूसरे की कक्षा में पृथ्वी के सापेक्ष बहुत पास आ जाते हैं परन्तु तब भी रात्रि - आकाश में इनकी दूरी बनी रहती है.