Thursday, November 7, 2013

मंगलयान - कक्षीय दूरी बढाने की पहली प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूर्ण

भारत देश के पहले अंतरग्रहीय मिशन के तहत मंगलवार को श्रीहरिकोटा से मंगल ग्रह के लिए सफल रूप से प्रक्षेपित मंगल यान करीब 25 दिनों तक पृथ्वी की कक्षा की परिक्रमा करेगा, लेकिन इस दौरान यह एक बार भी भारत के ऊपर से नहीं गुजरेगा.

मंगल यान से जुड़ी नवीन जानकारी के अनुसार मंगल यान को पृथ्वी की कक्षा से निकालकर मंगल की कक्षा में स्थापित करने की दिशा में पहली प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है. इसके तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से प्राप्त जानकारी के अनुसार बुधवार रात 1:17 बजे कक्षीय दूरी बढाने की पहली प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है. कक्षीय दूरी बढाने की यह प्रक्रिया पीनिया स्थित इसरो टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क (इसट्रैक) से पूरी की गई. कक्षीय दूरी बढाए जाने के बाद अब मंगल यान की पृथ्वी से अधिकतम दूरी (एपोगी) बढ़कर 28825 किलोमीटर और न्यूनतम दूरी (पेरिगी) 252 किलोमीटर हो गयी है. इस प्रक्रिया में 440 न्यूटन तरल इंधन जलाया गया और पूरी प्रक्रिया 416 सेकंड में पूरी हुयी. इसरो के अधिकारियों के अनुसार मंगल की ओर प्रस्थान करने से पहले पांच बार और इसकी कक्षीय दूरी बढ़ाई जानी है.

अंतिम कक्षीय परिवर्तन के बाद तब मंगल यान की पृथ्वी से एपोगी २ लाख किलोमीटर हो जायेगी, जिसके बाद 1 दिसम्बर को उसे लाल ग्रह की और रवाना कर दिया जाएगा. अपनी 300 दिनों की यात्रा में लगभग 40 करोड़ किलोमीटर का सफ़र तय करके यह यान लाल ग्रह पर पहुचेगा, जहां इसे मंगल की कक्षा में स्थापित किया जाएगा. यही सबसे ज्यादा जोखिम भरा भाग है क्योंकि अगर सब ठीक न रहा तो मंगल का गुरुत्वाकर्षण इस खींचकर अपने में समा लेगा.

2 comments:

  1. Bahut hi sarahniya kadam hai ye ISRO ke dwara.... ab tak kisi bhi ASIAN desh ne mangal grah par antriksha yaan bhejne ki koshish nahi ki hai, bharat aisa pahla ASIAN desh hoga.....
    Asha hai ki is antriksha yaan ki yatra safal hogi aur bharat ke antriksha itihaas me ek naya adhyay jud jayega......

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  2. परन्तु कुछ खोखले गरीबों के रहनुमा इस अभियान का पुरजोर विरोध कर रहे हैं, जिनके हिसाब से ये पैसों की बर्बादी है. परन्तु जब केवल एक अकेले कोलकाता में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की मूर्तियाँ केवल नवरात्री के दिनों में विसर्जित कर दी जाती हैं तो धार्मिक कार्य होने की वजह से इन्हें तब सहीं-गलत का कोई फर्क नहीं पड़ता.

    तब इनके जुबान से नहीं निकलता कि इन हजारों करोड़ों रुपये से कितनी योजनाओं को लागू किया जा सकता था, प्रतिवर्ष इस अभियान से सैकड़ों गुनी राशियाँ मूर्तियों में बहा दी जाती है परन्तु सब ठीक और एक बार उसके एक अंश भर की राशी देश को वैज्ञानिक क्षेत्र में सम्मान दिलाने लगे तो इन्हें गरीबो की याद आती है.

    थू है इन पर. जय भारत जय इसरो जय मंगल यान.

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