गत वर्ष सितम्बर
में भारत ने अन्तरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में लम्बी छलांग लगाते हुये अपना पहला
बहु-तरंगदैधर्य अंतरिक्ष उपग्रह (Multi-Wavelength Space Satellite) स्थापित किया था. इस उपग्रह का नाम एस्ट्रोसैट (Astrosat) रखा गया है. इस एस्ट्रोसैट की सहायता से हमारे खगोलविदों ने
हमारी आकाशगंगा में गोलाकार तारासमूह की खोज की है. इस वृहद् तारापुंज को वैज्ञानिक
जगत में ‘ब्रह्माण्ड के डायनासोर’ की उपाधि दी गयी है.
अन्तरिक्ष विभाग
की जानकारी के अनुसार इस तारा समूह में बड़ी संख्या में ऐसे तारे हैं जो गर्म
पराबैंगनी विकिरण के साथ चमकते हैं. ऐसे तारे ब्रम्हाण्ड में बहुत कम ही देखे गए
हैं. इस गोलाकार तारापुंज में ऐसे करीब 34 पराबैंगनी चमकीले तारे खोजे गए हैं. वैज्ञानिकों के दल ने इन तारों के सतह के तापमान, चमक जैसे गुणों का
पता लगाया. इन तारों का केंद्र पूरी तरह से खुला हुआ है और इसके कारण ही ये बहुत गर्म
बन गए हैं. ये तारे सूर्य जैसे तारों के अंतिम अवस्था में हैं.
ऐसे तारपुंज खगोलविदों
के लिए विशेष प्रयोगशाला मानी जाती हैं क्योंकि ऐसे पुंजों में जीवन की विभिन्न
अवस्थाओं के तारे एक साथ अध्ययन हेतु उपलब्ध होते हैं. जहाँ कुछ तारे अभी अपने
शैशवकाल में हैं तो कुछ अंतिम अवस्था में.
एस्ट्रोसैट से प्राप्त आंकड़ों और चित्रों को भारत के विज्ञान और तकनीकी विभाग के इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के खगोलविदों ने गहरा अध्ययन किया और गर्म पराबैंगनी चमकीले तारों को तुलनात्मक रूप से ठंडे लाल दानव तारों और अन्य अवस्थाओं के तारों से अलग किया. शोधकर्ता दल के वैज्ञानिक श्री सुब्रमण्यम के अनुसार पराबैंगनी चमकीले तारों में से एक हमारे सूर्य से 3000 गुना ज्यादा चमकीला है तथा उसकी सतह का तापमान एक लाख केल्विन है.
अध्ययन में पाया
गया कि प्राप्त गर्म पराबैंगनी विकिरण वाले तारों में ज्यादातर तारों में बाहरी
परत नहीं के बराबर होती है और वे जीवन की अंतिम प्रमुख उपगामी दैत्याकार अवस्था या
एसिम्प्टोटिक जायंट अवस्था से नहीं गुजरते बल्कि सीधे ही सफेद बौने तारे बन जाते
हैं.
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