पहले हायाबुसा अभियान की कामयाबी के बाद इसका अगला संस्करण हायाबुसा 2 क्षुद्रग्रह (एस्टेरोइड) रयुगु (Ryugu) के अभियान पर है. इसी वर्ष दिसम्बर में इसकी वापसी प्रस्तावित है. अपने इस अभियान में इसने बारीकी से इस एस्टेरोइड का अध्ययन किया है. हायाबुसा-2 के द्वारा ली गयी तस्वीरों में साफ़ नजर आता है कि यह
क्षुद्रग्रह अत्यधिक छिद्रयुक्त, हल्का और नर्म सा है. शायद ऐसे छिद्रों से भी युक्त जो एक छोर से दूसरे
छोर तक जाते हों.
जापान की अंतरिक्ष अन्वेषण संस्था के वैज्ञानिक ओकादा इसकी तुलना फ्रीज़ में
रखी सूख चुकी कॉफ़ी से करते हैं. उनके अनुसार संभवतः हमारे ग्रह भी कुछ ऐसे ही रहे होंगे अपने
निर्माण के पहले. यहाँ यह बताना आवश्यक है कि रयुगु एक बेहद प्राचीन क्षुद्रग्रह है जो कि सौर मंडल के निर्माण के पहले से उपस्थित है. इस छुद्रग्रह में कार्बन की प्रचुर उपलब्धता
है. हायाबुसा-2 ने एस्टेरोइड से पृथ्वी पर लाने के लिए दो नमूने भी लिए हैं जो सौरमंडल के निर्माण की प्रारंभिक अवस्था और परिस्तिथियों को समझने में हमारी मदद करेंगे. यान ने इसके साथ ही इस बात का भी पता लगाया है कि यह क्षुद्रग्रह किस तरह से गर्मी को सतह पर रोके रखता है. इसकी संरचना कैसी है.
जैसा हम जानते हैं कि घने चट्टानों वाली संरचनाएं धीरे से गर्मी सोखती है और ज्यादा देर तक गर्म रहती
हैं वहीँ छिद्रयुक्त संरचनाएं किसी रेगिस्तान की तरह होती हैं जो जल्दी-जल्दी अपना
तापमान खोती जाती हैं. कुछ वैसे ही जैसे
रेगिस्तानी क्षेत्र दिन में बेहद गर्म तो रात को काफी ठन्डे हो जाते हैं. रयुगु के साथ भी यही बाद वाली स्थिति आती है.
इस छिद्रयुक्त की आधी संरचना यानी 50% भाग में छिद्र है. एक अनुमान
के अनुसार 70 करोड़ वर्ष पहले किसी बड़े पिंड के टूटने के बाद इसका निर्माण हुआ है
और यह भुरभुरा सा है. शायद जिस पिंड से यह बना है वो भी ऐसा ही था हो. वैज्ञानिक
इसे ग्रहों के निर्माण से भी जोड़ते हैं और कहते हैं कि सौर मंडल के शुरुआत में ऐसी
ही ढीली संरचनाएं बनी होंगी और पुनः तुरंत टूट गयी होंगी. इसका यही मतलब है कि
ग्रहों के निर्माण के समय की प्रारंभिक अवस्था बड़ी जोड़-तोड़ वाली रही होगी जहाँ नित
नए पिंड बनते रहते थे और टूट कर पुन: निर्माण की प्रक्रिया में जुड़ जाते थे जब तक
कि एक परिपक्व और स्थायी संरचना न जाए जिसे हम ग्रह के नाम से जानते हैं.
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