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नेपच्यून के सदृश्य उपग्रह अपने ग्रह की परिक्रमा करते हुए (परिकल्पना) |
सोचिये अगर चाँद ना होता तो!!! रात कितनी नीरस और अधेरी होती, है न? मेरा तो मानना है कि ग्रह के लिए उपग्रह का होना बेहद शानदार बात होती है – बेचारे बुध और शुक्र ग्रह – उपग्रह विहीन.
कुछ ऐसा ही हाल अभी तक तो सौर-मंडल के बाहर के अन्तरिक्ष में भी यही कहानी चल रही थी – मतलब शून्य उपग्रह. खगोल वैज्ञानिक आधुनिक तकनीकी के साथ लगातार अन्तरिक्ष में अपनी दृश्य-सीमा में वृद्धि दर्ज कर रहे हैं. विगत वर्षों में हमारे सौर मंडल के बाहर लगभग 4000 बाह्य-ग्रहों (Exoplanets) की खोज की जा चुकी है, लेकिन अभी तक किसी बाह्य-ग्रह की परिक्रमा करता उपग्रह देखा नहीं गया था.
पर अगर नयी जानकारियों को सहीं माना जाए तो हमारे खोजी वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के बाहर पहला उपग्रह खोज निकाला है. इसे वे एक्सोमून (ExoMoon) कहते हैं. यह उपग्रह हमसे 8000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक गैसीय दानव ग्रह का चक्कर लगा रहा है. यह ग्रह और उपग्रह सिग्नस (Cygnus) तारामंडल में स्थित हैं. इस संभावित उपग्रह की खोज हबल और केप्लर स्पेस टेलिस्कोप के माध्यम से की गयी है. वैसे तो वैज्ञानिक इसे पहले उपग्रह बता रहे हैं पर इसका अभूतपूर्व आकार वैज्ञानिकों को सोचने पर विवश कर रहा है. यह उपग्रह हमारे नेपच्यून ग्रह के बराबर आकार का है. कारण – हमारे सौरमंडल में लगभग 200 उपग्रह हैं परन्तु कोई भी उपग्रह इतना विशालकाय या इसके नजदीक भी नहीं है. इसलिए अभी वैज्ञानिक पूरे दावे से इस बारे में अपने विचार नहीं बना पाए हैं. अभी तक किसी बाह्य-उपग्रह को उसके छोटे आकारों की वजह से नहीं खोजा जा सका था क्योंकि वे तुलनात्मक रूप से काफी छोटे होते हैं और इसकी वजह से उनसे आने वाले तरंगें बहुत सूक्ष्म होती हैं.
डेविड किप्पिंग, जो कि कोलंबिया विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं, इस खोज से बेहद उत्साहित हैं. पहली बार सौरमंडल से परे किसी उपग्रह को ढूँढने का यह पहला सफ़र प्रयास है. वे आशा करते हैं कि यह बात सच हो ताकि ग्रहों और उपग्रहों (विशेषकर इतने विशालकाय) के बनने के बारे में हमारा ज्ञान और विस्तृत हो सके.
आगे जो भी जानकारी उभरकर आये पर इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह अन्तरिक्ष विज्ञान की दुनिया में एक अभूतपूर्व खोज है. वैज्ञानिकों वर्षों से इन बाह्य-सौरमंडलीय उपग्रहों की खोज में जुटे हुए थे. इसके लिए उन्होंने 284 से भी ज्यादा बाह्य-ग्रहों का अध्ययन किया जो अपने सितारे से तार्किक दूरी पर थे. ऐसे ग्रहों का चयन किया गया जिन्हें एक परिक्रमा में कम से कम 30 दिन तो लगते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि अपने सितारे के बेहद पास का ग्रह, अपने उपग्रह को शायद ही बाँध के रख पायेगा और उसका सितारा उसे खींचकर अपने में समा लेगा. इस दौरान उन्हें केप्लर 1625b द्वारा परावर्तित प्रकाश में हलचल दिखाई दी जो इस बात का संकेत था कि कुछ ग्रह और प्रेक्षक के बीच से गुजरा है – यह एक उपग्रह के होने की सभावना थी. वैज्ञानिकों ने इस अनुमान को पुख्ता करने के लिए गहन अध्ययन किया और बेहतर आंकड़े एकत्र किये. लेकिन पूरी तरह निश्चितता होने के पहले ही केप्लर दूरदर्शी की दिशा परिवर्तित हो गयी परन्तु वैज्ञानिकों को पर्याप्त आकड़े मिल चुके थे.
वैज्ञानिक समुदाय अपनी खोज की प्रमाणिकता के सबूत ढूँढने में लगा है, पर अगर वाकई ये गणना सहीं है तो हमंन पहली पूर्ण ग्रहीय प्रणाली की खोज के लिए प्रसन्न होना चाहिए....ये कोई साधारण खोज नहीं है
इस लेख में तीन गलतियां दिखीं जिसे edit कर लेने से लेख और उन्नत स्तरीय हो जाता।
ReplyDeleteजी आप गलतियों को इंगित करें. सुधार हमेशा आवश्यक होता है.
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