Sunday, July 1, 2018

हेरा अभियान – बाइनरी क्षुद्रग्रह पर पहला अभियान (प्रस्तावित)

मानव सदा से जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा है, और हर अलग सी लगने वाली चीजों के बारे में वह अधिक-से-अधिक जानना चाहता है. परन्तु जिस प्रकृति ने मानव को रचा है, वह उसकी जिज्ञासा को अनवरत जारी रखने सदा प्रयत्नशील रहती है. मानव कितनी भी खोज क्यों न कर ले, प्रकृति फिर उसके सामने कोई नया कौतुहल रख ही देती और मानव अपनी प्रवृत्ति के अनुसार एक नयी खोज में फिर जुट जाता है. 

डीडीमॉस क्षुद्रग्रह प्रणाली - बड़ा पिंड डीडीमेन और उसका चाँद डीडीमून
 कुछ ऐसा ही होने वाला है इस बार भी – यूरोपीय अन्तरिक्ष संस्थान (ESA – European Space Agency) जल्द ही जुड़वाँ या द्वय-क्षुद्रग्रहों (Binary Asteroids System) पर मानव इतिहास का पहला अभियान भेजने वाला है. यह अभियान एक वैज्ञानिक अध्ययन के साथ ही धरती को क्षुद्रग्रहों के टकराव से बचाने के महत्वाकांक्षी योजना में अपना प्रबल योगदान भी प्रदान करेगा. 

इस अभियान का नाम ग्रीक देवी हेरा (Hera) को समर्पित है जो विवाह की देवी मानी जाती है. हेरा दोहरे-क्षुद्रग्रहों (Binary Asteroids) यानि क्षुद्र-ग्रहों के एक ऐसे जोड़े के लिए उड़ान भरेगा जो एक-दूसरे का चक्कर लगाते हैं. इस जोड़े का नाम है 65803-डीडीमॉस (65803-Didymos) जो कि धरती के नजदीक स्थित क्षुद्रग्रहों का जोड़ा है. इस जोड़े में 780 मीटर व्यास के बड़े पिंड डीडीमेन (Didymain) का चक्कर 160 मीटर का पिंड लगा रहा है मानो जैसे वह इसका चाँद हो. इस नन्हे चाँद को वैज्ञानिक डीडीमून (Didymoon) कहते हैं. यही चन्द्रमा इस हेरा अभियान का मुख्य केंद्र बिंदु भी है. हेरा अन्तरिक्ष यान हाई-रेसोल्यूशन कैमरे, लेज़र और रेडियो तरंगों के माध्यम से इसकी पूरी सतह का नक्शा तैयार , उपरी परत के अन्दर तक झांकते हुए. ये आज तक का सबसे छोटा क्षुद्रग्रह है जिसका अध्ययन करने का प्रयास किया जाएगा. वैसे मंगल और बृहस्पति के बीच व्याप्त असंख्य क्षुद्रग्रहों में ऐसे जोड़ों की संख्या लगभग 15% अनुमानित है. 

हेरा प्रोजेक्ट के प्रबंधक इयान कार्नेली (Ian Carnelli)के अनुसार इन क्षुद्रग्रहों के काफी छोटे आकार के कारण उत्पन्न अत्यंत सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में दिशा-निर्देशन और मार्गदर्शन प्रणाली के साथ प्रयोग काफी चुनौतीपूर्ण रहेगा. परन्तु सफलता की उन्हें पूर्ण आशा भी है. 

ये अध्ययन तो ठीक है, परन्तु मैंने लिखा है कि यह अभियान क्षुद्रग्रहों से धरती की रक्षा के महत्वाकांक्षी अभियान का भी हिस्सा है तो कैसे!!! ये होगा नासा (NASA) की मदद से. हेरा के इस प्रणाली तक पहुँचने की पूर्ण ही नासा का एक महत्वपूर्ण अभियान जिसे डार्ट (DART) का नाम दिया गया है, इस चाँद जैसे छोटे क्षुद्रग्रह से अक्टूबर 2022 में टकराएगा. इस टक्कर का उद्देश्य डीडीमॉस की परिक्रमा करते इस डीडीमून के परिक्रमा पथ में परिवर्तन करना है. अगर ऐसा हुआ तो यह हमारे सौर-मंडल का पहला पिंड बन जाएगा जिसके परिक्रमा पता को मानवीय प्रयासों से बदला गया होगा. अगर यह कामयाब हुआ तो भविष्य में धरती से टकराने वाले उल्का और क्षुद्रग्रहों के परिक्रमा पथ में परिवर्तन करके धरती को बचाया जा सकेगा. 

इस ऐतिहासिक टक्कर के बाद डीडीमून में हुए परिवर्तनों के बारे में जानकारी देगा यह हेरा अभियान. नासा ने टक्कर की योजना जरूर बनायी है परन्तु इस टक्कर के बाद के प्रभावों का अध्ययन केवल धरातलीय अन्वेषण से किया जाना प्रस्तावित है . इस घटना के बाद की जो महत्वपूर्ण जानकारियाँ गायब रहेंगी उसे हेरा अभियान (Hera Mission) पूर्ण करेगा. जिससे यह पता चल पायेगा की इसकी कक्षा और संरचना में किस तरह का परिवर्तन हुआ है.

हेरा से प्राप्त विस्तृत आंकड़े इस ऐतिहासिक टक्कर के रामंचक घटनाक्रम को समझने में हमारी मदद करेगा ताकि भविष्य में ऐसे अवांछित क्षुद्रग्रहों के पृथ्वी से टकराव को रोका जा सके और पृथ्वी के भविष्य को सुरक्षित बनाया जा सके. 

हेरा अन्तरिक्ष यान - डीडीमून की संरचना का अध्ययन करता हुआ
अभी तक ऐसे क्षुद्रग्रहों के द्रव्यमान की गणना के लिए उसके गुरुत्वीयबल को आधार बनाया जाता रहा है, लेकिन डीडीमून जैसे छोटे पिंड के लिए यह तरीका सहीं नहीं है क्योंकि इसका गुरुत्व, बड़े पिंड जिसे वैज्ञानिक डीडीमेन कहते हैं, के गुरुत्व की तुलना में नगण्य है जिसके कारण इसके गुरुत्व का प्रभाव बहुत कम हो जाता है. हेरा अभियान इसके बदले डीडीमेन के बड़े भू-लक्षणों जैसे बड़े पहाड़ या क्रेटर पर होने वाले डीडीमून के प्रभाव के आधार पर 90 % शुद्धता के साथ डीडीमून के द्रव्यमान की गणना करेगा. इस प्रक्रिया से सबसे महत्वपूर्ण  है -  डार्ट से हुए टक्कर से निर्मित क्रेटर का अध्ययन. इस कार्य के लिए इसके पास फ्रेमिंग camera, लेज़र राडार, स्पेक्ट्रल इमागेर जैसे आधुनिक उपकरण होंगे. 

वैसे पूर्व में बजट के कारण यूरोप की सरकारों ने इस अभियान से इनकार कर दिया था, परन्तु वैज्ञानिक जगत के विरोध के बाद पुनः प्रस्तावित यह अभियान अपने वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होगा, इसी उम्मीद के साथ. 

अगर सब ठीक हुआ, तो धरती को बाहरी क्षुद्रग्रहों या विशाल उल्का-पिंडो से कम-से-कम खतरा होगा; परन्तु सबसे बड़ा खतरा धरती को तो हम इंसानों से ही है... है न!!!

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