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प्लूटो और शेरोन |
प्लूटो (यम) हमारे सौरमंडल में आकार के आधार पर दूसरा सबसे बड़ा बौना ग्रह है. वैसे आकार में यह हमारे चन्द्रमा से भी काफी छोटा है. आकार में छोटा होने के कारण इसे इसके उपग्रह शेरोन (Charon) के साथ जुड़वाँ ग्रह भी कहा जाता था. सूर्य से दूरी के क्रम में अंतिम स्थान पर विराजमान प्लूटो काइपर बेल्ट (Kuiper Belt) में मौजूद है. इस बेल्ट या घेरे में मौजूद सभी खगोलीय पिंड सौरमंडल के बाहरी घेरे में माने जाते हैं और इनके आकार और द्रव्यमान सौरमंडल की सभी वस्तुओं से काफी कम है और प्लूटो इस काइपर बेल्ट पर सबसे बड़ा खगोलीय पिंड है. इसका व्यास केवल 2376 किलोमीटर ही है. प्लूटो जमी हुयी नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ और चट्टानों से बना हुआ है जैसा इस क्षेत्र में स्थित समस्त पिंड बने हुए हैं.
जहाँ तक रही बात इसकी परिक्रमा की तो वह भी थोड़ी अजीब है. जहाँ बाकी ग्रह अपनी वलयाकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं वहीँ प्लूटो की कक्षा काफी विचलित है. यह नेपच्यून की कक्षा में प्रवेश करता है और इसका उपसौर (सूर्य से न्यूनतम दूरी) जहाँ 4.43 अरब किलोमीटर तक होती है वहीँ अपसौर (सूर्य से अधिकतम दूरी) 7.31 अरब किलोमीटर तक हो जाती है. जिसके कारण इसे सूर्य की परिक्रमा में लगभग 247.68 पृथ्वी-वर्ष लग जाता है.
सूर्य से अत्यधिक दूरी पर स्थित प्लूटो पर बहुत ही क्षीण वायुमंडल है जो मुख्यतः नाइट्रोजन, मीथेन और कार्बन मोनो-ऑक्साइड का मिश्रण है. एक मजेदार बात यह भी है कि सूर्य से जब यह अपसौर की स्थिति में अपनी अधिकतम दूरी पर होता है तो यहाँ और अधिक ठण्ड हो जाती है जिसके कारण नाइट्रोजन जैसी गैसें जम कर इसकी सतह पर गिर जाती हैं और वायुमंडल पतला होते जाता है. उपसौर की स्थिति में इन जमी गैसों का कुछ भाग वाष्पीकृत हो जाता है और वायुमंडल में आ जाता है, परन्तु यह सतत प्रक्रिया लगातार वायुमंडल को महीन बना रही है.
भले ही प्लूटो एक बौना ग्रह है जिसका आकार बहुत ही छोटा है, लेकिन चंद्रमाओं (उपग्रहों) के मामले में यह काफी धनी है. प्लूटो के कुल पाँच उपग्रह ज्ञात हैं – जिसमें सबसे बड़ा है 1978 में खोजा गया शेरोन. खोज के काफी वर्षों तक इसे इसका एकमात्र उपग्रह माना जाता रहा था और वैज्ञानिकों का एक समूह इस प्रणाली को जुड़वाँ-ग्रह भी कहते रहे हैं. 2005 के बाद पता चला कि इसके चार और चाँद हैं - जिनका नाम निक्स (Nix), हाइड्रा (Hydra), स्टिक्स (Styx) और कर्बेरोस (Kerberos) रखा गया.
वायेजर (Voyager) के बाद न्यू होराइजन्स (New Horizons) सौरमंडल
के इस क्षेत्र तक जाने वाला
अन्तरिक्ष यान बना और यह 14 जुलाई 2015 को इस ग्रह से केवल 12500 किलोमीटर
की दूरी से गुजरा. इस यान से प्रेषित आंकड़े प्लूटो के बारे में हमारी समझ
को और विकसित करेंगे. मृत्यु के देवता ‘यम’ के अँधेरे में न जाने कितने
छुपे सवालों के जवाब शायद हमें तब मिल पाएं.
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न्यू होराइजन्स (New Horizons) |
प्लूटो से ग्रह का दर्जा क्यों छीन लिया गया –
अपने खोज के समय से ही इसे सौर-मंडल के मुख्य ग्रहों में सूर्य से दूरी के क्रम में नौंवा (अंतिम) ग्रह माना गया था. लेकिन समय के साथ अनेक अन्तरिक्ष अभियानों और पृथ्वी केन्द्रित खोजों ने इस ग्रह और सौरमंडल के बारे में नयी जानकारियाँ प्रदान की –
अपने खोज के समय से ही इसे सौर-मंडल के मुख्य ग्रहों में सूर्य से दूरी के क्रम में नौंवा (अंतिम) ग्रह माना गया था. लेकिन समय के साथ अनेक अन्तरिक्ष अभियानों और पृथ्वी केन्द्रित खोजों ने इस ग्रह और सौरमंडल के बारे में नयी जानकारियाँ प्रदान की –
सबसे पहले तो वैज्ञानिकों को प्लूटो का परिक्रमा पथ विचलित करता रहा.
परन्तु धीरे-धीरे वैज्ञानिकों को लगातार नेपच्यून के परे काइपर बेल्ट (Kuiper Belt) में लगातार अनेक खगोलीय पिंड मिलने लगे जो प्लूटो के सदृश्य थे. इसका आकार बहुत ही छोटा था। इस से पहले सब से छोटा ग्रह बुध (Mercury) था। प्लूटो बुध से आधे से भी छोटा था। आगे अन्वेषणों में पता चला कि वहां तो एक पूरा घेरा बना हुआ है जिसमें अनगिनत खगोलीय पिंड परिक्रमारत हैं. वैज्ञानिकों ने इस घेरे का नाम काइपर बेल्ट रखा और लगातार वहाँ से ह्यूमिया (Haumea) और मेकमेक (Makemake) जैसे पिंड मिलने लगे. एरिस (Eris) के मिलने के बाद वैज्ञानिकों के सामने एक नयी चुनौती आ पड़ी कि क्या ऐसे पाए जाने वाले सभी पिंडों को ग्रह कहा जाए जो प्लूटो के जैसे लगते हैं. ऐसा होना अव्यवहारिक था क्योंकि समय के साथ अगणित पिंडों की खोज भविष्य में अवश्यभावी थी. अतः वैज्ञानिकों के संघ ने अनेक विचार-मंथन के बाद 13 सितम्बर 2006 को ‘बौने ग्रहों’ की एक नयी श्रेणी स्थापित की और प्लूटो के साथ ह्यूमिया (Haumea), मेकमेक (Makemake), एरिस (Eris) और सेरेस (Ceres) को इनमें स्थान दिया गया.
ऐसा करने के पीछे वैज्ञानिकों ने अपने तर्क रखे थे. किसी पिंड को ग्रह का दर्जा दिए जाने के लिए तीन शर्तें पूरी करनी आवश्यक मानी गयीं –
1. वह सूर्य की परिक्रमा करता हो.
2. उसके पास पर्याप्त द्रव्यमान हो जिससे वह लगभग गोलाकार आकृति प्राप्त कर सके.
3. उसने अपने परिक्रमा पथ के अंतर्गत अपने गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के आस-पास के क्षेत्र को साफ़ कर दिया हो – या यूं कहें कि उसके गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में उसके उपग्रहों के अलावा और कोई पिंड न रह सके. जो भी पिंड हो वह प्लूटो के गुरुत्वीय प्रभाव में बंधा रहे. प्लूटो यह नहीं कर पाया क्योंकि उसके आस-पास अनेकों काइपर बेल्ट पिंड हैं जो उसके गुरुत्वीय प्रभावों से विचलित नहीं होते. बस यही एक कारण था कि इसे मुख्य ग्रह का ताज छोड़ना पड़ा और नियमानुसार तीसरी शर्तें पूरी न करने पर ‘बौने ग्रह’ के नए पद से संतुष्ट होना पड़ा.
आशा है ये जानकारी आपको पसंद आई होगी, जल्द ही सौरमंडल के विशालतम ग्रह - बृहस्पति पर लेख के साथ ...
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