Monday, January 29, 2018

ज्वालामुखियों से भरा नर्क या सौन्दर्य की देवी - शुक्र (Venus)

जवालामुखी की धरती - शुक्र ग्रह
प्राचीन भारतीय सभ्यता में ‘भोर का तारा (The Morning Star)’ और ‘सांध्य-तारा (The Evening Star)’ के नाम से पहचाने जाने वाला शुक्र ग्रह (Planet Venus), सूर्य से दूरी के क्रम में दूसरे स्थान पर है. पृथ्वी से देखने पर आकाश में चन्द्रमा के बाद सबसे चमकीले इस आकाशीय पिंड का नामकरण  पाश्चात्य सभ्यताओं में प्रेम और सौन्दर्य की रोमन देवी वीनस (Venus) के ऊपर किया गया है. 
शुक्र (Venus) ग्रह की गति में एक दिलचस्प बात है – जहाँ लगभग सभी ग्रहों की घूर्णन काल (Rotation Period) यानि अपने अक्ष (Axis) पर एक चक्कर लगाने में लगने वाला समय, परिक्रमण काल (Period of Revolution - सूर्य का चक्कर लगाने में लगने वाला समय) से कम ही होती है, वही शुक्र के साथ यह बिलकुल उलट है. अपने अक्ष पर धूमने के नाम पर सौन्दर्य की यह देवी बहुत धीमी है.  जहाँ इसे सूर्य की एक परिक्रमा करने में इसे 224.7 पृथ्वी दिवस लगते हैं वहीं अपने अक्ष पर इसे एक चक्कर लगाने में पूरे 243 पृथ्वी-दिवस लग जाते हैं. एक और बात शुक्र बाकी ग्रहों की तुलना में उलटी दिशा (दक्षिणावर्त) घूमता है. शुक्र की कक्षा भी अनोखी है लगभग पूर्ण वृत्ताकार. यह 10,80,00,000 किलोमीटर की औसत दूरी पर सूर्य की परिक्रमा करता है. 

शुक्र चट्टानी ग्रह है जिसका आकार और बाह्य-संरचना हमारी पृथ्वी के तरह नजर आती है. पृथ्वी के समान आकार और संरचना की वजह से इसे कभी-कभी पृथ्वी की ‘बहन’ भी कहा जाता है. परन्तु जहाँ पृथ्वी जीवन के अनुकूल वातावरण से समृद्ध है वहीँ शुक्र में सल्फ्यूरिक अम्ल की बारिश होती रहती है. सल्फ्यूरिक अम्ल का यह अपारदर्शी बादल शुक्र के धरातल को सबकी नजरों से बचाकर रखे हुए है. जहाँ बुध ग्रह में वायुमंडल नगण्य है, ठीक अगले ग्रह याने शुक्र में यह सभी आतंरिक ग्रहों में सबसे सघन है और मुख्यतः कार्बन डाईऑक्साइड से बना है. वैसे यहाँ हवा भी बड़े ही धीमे गति से चलती है. 

शुक्र के अध्ययन में एक दिलचस्प बात सामने आई है कि यहाँ अरबों साल पहले पानी हो सकता था लेकिन कार्बन डाईऑक्साइड की प्रचुरता से लगातार होते ग्रीन-हाउस प्रभाव की वजह से वह वाष्पीकृत होते चले गए होंगे और आज शुक्र की धरती ज्वालामुखियों की धरती है जहाँ सौरमंडल के किसी भी ग्रह की तुलना में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी मौजूद हैं. इसकी भूमि ज्वालामुखी से निकले लावा और चट्टानों के सूखे टुकड़ों से भरी पड़ी एक मृत धरती है, जिसमें अगली हलचल किसी ज्वालामुखी की सक्रियता से ही होती है. बेसाल्ट से बनी इस धरातलीय संरचना का 65% हिस्सा इन्हीं ज्वालामुखी के लावा से बना हुआ है. शुक्र के ज्वालामुखी शील्ड प्रकार के ज्वालामुखियों के अंतर्गत आते हैं जिसमें विष्फोट नहीं होता बल्कि लावा द्रव्य बाहर निकलते रहता है. सीफ मोंस (Sif Mons), गुला मोंस (Gula Mons), सफास मोंस (Safas Mons) आदि ऐसे ही ज्वालामुखी हैं. वैसे शुक्र में एक लाख से भी अधिक ज्वालामुखी होने की सम्भावना हैं. 

जैसा बुध के समय भी इस बात का उल्लेख हुआ था कि आंतरिक ग्रहों के उपग्रह नगण्य हैं. चार आंतरिक ग्रहों (बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल) के मिलाकर कुल केवल तीन प्राकृतिक उपग्रह या चाँद हैं. सम्पूर्ण सौरमंडल में केवल  बुध और शुक्र ही ऐसे ग्रह हैं जिनका कोई उपग्रह नहीं है. इसका कारण इसकी सूर्य से नजदीकी है जिसके कारण कोई भी पिंड इनकी कक्षा में आने के पहले ही सूर्य के गुरुत्वाकर्षण में फंसकर उससे टकरा जाता है और नष्ट हो जाता है. 
शुक्र पारगमन (Transit of Venus)

एक बात और शुक्र की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के सापेक्ष थोड़ी झुकी हुई है; इसलिए, जब यह ग्रह पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है तो यह सूर्य के एक हिस्से के ऊपर नजर आता है, इसे शुक्र पारगमन (Transit of Venus) कहते हैं. 
मेरिनर-2 (Mariner-2) USA

सौन्दर्य की देवी के नाम पर पड़े इस ग्रह की ओर शुरू से वैज्ञानिकों की बेहद दिलचस्पी रही और अनगिनत अन्तरिक्ष अभियान इस ग्रह के अध्ययन के लिए भेजे गए. शुरुआत हुयी सोवियत संघ (USSR) द्वारा 12 फरवरी 1961 को वेनेरा-1 (Venera-1) के साथ, परन्तु प्रक्षेपण के सातवे दिन यान ने संपर्क खो दिया. अगले साल 22 जुलाई 1962 को संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) ने मेरिनर (Mariner-1) नामक यान शुक्र की ओर भेजा परन्तु शायद इस देवी तक पहुँचना इतना आसान नहीं था और विफल प्रक्षेपण के साथ यह अभियान भी असफल हो गया. परन्तु कुछ ही दिनों बाद मेरिनर मिशन का दूसरा अन्तरिक्ष यान मेरिनर-2 (Mariner-2)शुक्र की धरती से 34,883 किमी उपर से गुजरा और दुनिया का पहला सफलतम अन्तर्ग्रहीय अन्तरिक्ष मिशन बन गया। इसने शुक्र के तापमान की 425 डिग्री होने की पुष्टि की और जीवन की संभावनाओं की तलाश को पहला बड़ा सदमा लगा. 

आने वाले समय में वेनेरा (Venera), मेरिनर (Mariner), कॉसमॉस (Cosmos), वेगा (Vega), स्पुतनिक (Sputnik) जैसे अनेक अभियानों ने इस ग्रह के बारे में हमारी समझ को और विकसित किया. हर अन्वेषण इस सौन्दर्य की देवी के उस चेहरे को सामने लाता गया जो सौन्दर्य की परिभाषा के पूर्णतः विपरीत है; और पता चला कि सुन्दर समझा जाने वाला यह ग्रह अन्दर से पूरी तरह ज्वालामुखियों से तप्त एक नरक है जिसमें आकाश भी तेज़ाब बरसाते हैं.

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