Saturday, January 27, 2018

बुध (Mercury) – सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह

क्रेटरों से भरी हुयी बुध की धरा 
बुध (Mercury), हमारे सौरमंडल में सूर्य से दूरी के क्रम में पहला और सभी प्रमुख आठ ग्रहों में सबसे छोटा  है. इतना छोटा कि सौर मंडल के कुछ उपग्रह जैसे गेनीमेड (Ganymede) और टाइटन (Titan) से भी छोटा है. परन्तु इसका द्रव्यमान उनसे जरूर ज्यादा है. इसका कोर भी इसके आयतन का कुल 42% घेरता है जो इसके कोर को अनुपातिक तौर पर बहुत बड़ा बना देता है. सूर्य के नजदीक होने की वजह से यह सूर्य की एक परिक्रमा केवल 88 पृथ्वी दिवसों (Earth-Days) में लगा लेता है, परन्तु अपने अक्ष (Axis) पर एक चक्कर लगाने में इसे पूरे 59 पृथ्वी दिवस लग जाते हैं. इसके इस घूर्णन काल (Rotation Period - अपने अक्ष पर एक चक्कर याने बुध का एक दिन) और परिक्रमण काल  (Period of Revolution - सूर्य का एक चक्कर याने बुध पर एक वर्ष) के बीच के इस कम अंतराल से एक रोचक बात होती है  - वह यह कि वहाँ पर एक दिन (सूर्योदय से सूर्योदय तक) पूरे 176 पृथ्वी-दिवसों के बराबर होता है क्योंकि कोई एक क्षेत्र वापस भले ही अपनी स्थिति में 59 दिनों में आ जाता हो, परन्तु सूर्य की ओर उसकी दिशा तीन घूर्णन या दो परिक्रमण काल के बाद ही पहले जैसी हो होती है. 

बुध ग्रह का नाम रोमन मिथको के अनुसार मरकरी (Mercury)  के ऊपर रखा गया है जो कि व्यापार और यात्रा देवता है. मरकरी यूनानी देवता हर्मिश (Hermes) का रोमन रूप है जो कि देवताओ का संदेशवाहक देवता है। इसे संदेशवाहक देवता का नाम इस कारण मिला क्योंकि यह ग्रह आकाश में काफी तेजी से गमन करता है।
बुध का अक्षीय झुकाव (Axial tilt) सम्पूर्ण सौरमंडल में सबसे कम केवल 1/30 डिग्री है, परन्तु बुध के अक्ष की विकेन्द्रता सौरमंडल में सबसे अधिक है. यह ग्रह अपसौर (Aphelion - किसी ग्रह की अपनी कक्षा पर सूर्य से अधिकतम दूरी - 69,816,900 कि.मी.) तथा उपसौर (Perihelion - किसी ग्रह की अपनी कक्षा पर सूर्य से न्यूनतम दूरी - 46,001,200 कि.मी.) की स्थिति में सूर्य से करीब 1.5 गुणा ज्यादा दूर होता है.

एक और मजेदार बात है कि बुध पृथ्वी से केवल सुबह या शाम को दिखाई देता है, आधी रात को यह नजर नहीं आता है. साथ ही पृथ्वी से देखने पर यह हमारे चन्द्रमा जी तरह कलाएं प्रदर्शित करता है. वैसे सूर्य के काफी नजदीक होने के कारण भले ही यह काफी चमकीला है पर इसी चमक और नजदीकी होने के कारण इसे देखना शुक्र की तुलना में थोड़ा ज्यादा कठिन है. 

किसी ग्रह का वायुमंडल सूर्य से सतह तक आने वाली किरणों से वापस जाने से रोकता है जिससे ग्रह पर गर्माहट बने रहती है जो कि रात्रिकाल में उसके तापमान को व्यवस्थित करती है. परन्तु बुध में वायुमंडल नगण्य है और इसके कारण सौर वायु के साथ आये सभी परमाणु वापस अन्तरिक्ष में चले जाते हैं. इस कारण दिन और रात के तापमान में बहुत अधिक अंतर है. यह तापमान जहाँ दिन में यह अधिकतम 427°C तक चला जाता है वहीँ रात कि यह न्यूनतम −173 °C तक भी हो जाता है. तापमान में इस भीषण विविधता के चलते बुध की धरा फट सी गयी है और यह किसी सूख चुके कोयले के ढेर की तरह नजर आता है. चन्द्रमा की तरह इसकी धरातल भी क्रेटरों से भरी पड़ी है जो इस ग्रह पर जीवन के विकास की किसी भी संभावनों को नकार देती है. वैसे बुध को मौसमों का भी कोई अनुभव नहीं है और इसका वातावरण हमेशा नवीन बना रहता है. 

आंतरिक ग्रह उपग्रहों के मामले में काफी गरीब हैं. चार आंतरिक ग्रहों (बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल) के मिलाकर कुल केवल तीन प्राकृतिक उपग्रह या चाँद हैं. सम्पूर्ण सौरमंडल में केवल  बुध और शुक्र ही ऐसे ग्रह हैं जिनका कोई उपग्रह नहीं है. इसका कारण इसकी सूर्य से नजदीकी है जिसके कारण कोई भी पिंड इनकी कक्षा में आने के पहले ही सूर्य के गुरुत्वाकर्षण में फंसकर उससे टकरा जाता है और नष्ट हो जाता है.  

बुध के अन्वेषण के लिए अब तक दो अन्तरिक्ष यान मेरिनर-10
मेरिनर-10 (Meriner - 10)
(Mariner-10) तथा मेसेंजर (Messenger) बुध ग्रह पर जा चुके हैं. मेरिनर-10, 1974-1975 के मध्य तीन बार इस ग्रह के समीप जा चूका है. इसने इस ग्रह का धरातलीय नक्शा तैयार किया था. मेसेंजर 2008 से 2011 ने मेरिनर के न देखे हिस्से की तसवीरें भेजी थी. वर्तमान में हबल टेलिस्कोप की मदद से लगभग 45% हिस्से का नक्शा तैयार किया जा चूका है, बाकी हिस्सा तेज चमक की वजह से दृश्य नहीं होने के कारण बाकी भू-भाग का धरातलीय नक्शा तैयार नहीं हो पाया है. बुध के प्रमुख स्थानों में कैलोरिस घाटी है जो 1300 किलोमीटर से ज्यादा व्यास की है जो शायद किसी धूमकेतु की टक्कर से बनी है. इसके अलावा यहाँ एन्गकोर घाटी, केरल घाटी और टिमगेड घाटी प्रमुख हैं.

आशा है सौर-परिवार के क्रम से पहले ग्रह बुध पर यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी. मैंने प्रयास किया है कि कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी न छूट जाए, परन्तु यह भी तथ्य है कि कोई भी लेख कभी भी सम्पूर्ण नहीं हो सकता.

सुझाव के इन्तजार में ....

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