Thursday, December 28, 2017

सूर्य - सौर मंडल का केंद्र

सूर्य (The Sun)
हमारे सूर्य सौरमंडल के केंद्र में स्थित एक पीला बौना या वामन (Yellow Dwarf) तारा है जिसके शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण में बंधकर सौरमंडल के सभी सदस्य यथा ग्रह, क्षुद्र ग्रह, उपग्रह (अपने ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण में बंधकर), धूमकेतु और अन्य अपने परिक्रमा पथ में इसके चहरों ओर परिक्रमा करते हैं. सूर्य, सौरमंडल के विशालतम पिंड है जो समस्त सौरमंडल के कुल द्रव्यमान का  99.86% है. सूर्य का व्यास लगभग 13 लाख 90 हजार किलोमीटर है. यह हमसे लगभग 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसका प्रकाश हम तक पहुँचने में लगभग 8 मिनट लगता है.

सूर्य का प्रकाश, सम्पूर्ण सौरमंडल की उत्पत्ति का आधार है. यह हाइड्रोजन और हीलियम नामक गैसों का विशाल गैसीय गोला है जो परमाणु संलयन की प्रक्रिया के द्वारा अपने केंद्र में उर्जा उत्पन्न करता है. सूर्य की सतह का निर्माण हाइड्रोजन, हीलियम के साथ ही लोहा, निकल, ऑक्सीजन, सिलिकॉन, सल्फर और कार्बन जैसे तत्वों से हुआ है. जिसमें से प्रारंभिक दो तत्व लगभग 98% उपस्थित हैं. इसका आकार लगभग गोलाकार है जो ध्रुवीय क्षेत्र में थोडा चिपटा हुआ है, लेकिन चट्टानी ग्रहों की तरह इसकी कोई निश्चित सीमा रेखा निर्धारित नहीं है.

यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि समस्त आकाशीय पिंडों की तरह सूर्य भी हमारी आकाशगंगा (The Milky Way) के केंद्र के चारों ओर परिक्रमा करता है. 251 किलोमीटर प्रति सेकंड की अनुमानित गति से इसे एक परिक्रमा करने में लगभग 25 करोड़ वर्ष लगते हैं. सूर्य को शक्तिशाली दूरबीन से देखने पर इसकी सतह पर कई छोटे-बड़े धब्बे दिखाई देते हैं जिन्हें वैज्ञानिक सौर कलंक के नाम से पुकारते हैं. ये धब्बे अपना स्थान लगातार बदलते रहते हैं जिसके अध्ययन से वैज्ञानिकों ने इसके अक्ष पर परिक्रमा अवधि 27 पृथ्वी दिवस के बराबर की गणना की है.

सूर्य का निर्माण अन्य तारों की तरह ही आणविक बादलों से हुआ माना जाता है जो करीब 4.57 अरब वर्ष पहले बना. वर्त्तमान सूर्य अपने जीवन की मध्य अवस्था में पीले वामन तारे के रूप में है. करीब 5.4 अरब वर्ष eके पश्चात इसके लाल दानव तारा बनने का अनुमान है जिस स्थिति में यह इतना बड़ा हो जाएगा कि यह सौरमंडल के समस्त आंतरिक ग्रहों (बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल )  की कक्षा को निगल जाएगा. वैसे डरने की कोई बात नहीं है क्योंकि इसके पहले ही यह हमे पृथ्वी को जलाकर शुक्र जितना गर्म बना चूका होगा और यहाँ पर केवल आग का दरिया बहेगा.

सौरमंडल के स्वामी और हमारे पृथ्वी पर जीवनदाता सूर्य के बारे में अध्ययन करने के लिए अनेक अभियान संचालित किये जाते रहे हैं जिनमें सर्वप्रथम पायनियर श्रृंखला (1959-1968) ने सौर वायु और उसके चुम्बकीय क्षेत्र का विस्तृत अध्ययन किया. 1970 के दशक में अमेरिका और जर्मनी के संयुक्त सहयोग से हेलिओस 1 व 2 ने सौर वायु और कोरोना के बारे में नए आंकड़े प्रदान किये. 

नासा के स्कायलैब अन्तरिक्ष स्टेशन में एक सौर वेधशाला का मोड्यूल स्थापित किया गया था. इसके अलावा अनेक अभियान जैसे यूलिसिस, जेनेसिस आदि समय-समय पर इस सितारे के विविध अध्ययन हेतु संचालित होते रहे हैं, परन्तु इनमें सबसे महत्वपूर्ण सौर मिशन रहा है सोहो (सोलर एंड हेलिओस्फेरिक ओब्सर्वेटरी). 2 दिसम्बर 1995 को शुरू हुआ यह नासा और यूरोपीय अन्तरिक्ष संस्था का संयुक्त अभियान था. सोहो पृथ्वी और सूर्य के बीच के लोंग्रेगियन बिंदु, जहाँ दोनों पिंडों का गुरुत्वीय बल बराबर होता है, पर स्थापित किया गया था. इसने अनेक तरंगदैर्ध्यों पर सूर्य की विस्तृत तस्वीरे प्रदान की तथा अनेक धूमकेतुओं की खोज और अध्ययन भी किया. इसकी सफलता से उत्साहित होकर सोलर डायनामिक्स ऑब्जर्वेटरी अभियान फरवरी 2010 में शुरू किया गया. 

वर्तमान में भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन याने इसरो ने आदित्य उपग्रह का प्रक्षेपण किया है जो सोलर कोरोना की गतिशीलता का अध्ययन करेगा.

आने वाले समय में सूर्य की आंतरिक संरचना और इसके अनसुलझे रहस्यों से और परदे उठेंगे, तब तक के लिए हमारे सूर्य देव को नमन...

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