Sunday, October 16, 2016

स्पुतनिक २ - पहली बार जीवित प्राणी अन्तरिक्ष में

स्पुतनिक –  1 (Sputnik-1) के सफल प्रक्षेपण के साथ अन्तरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में प्रथम कदम बढाने के बाद उत्साहित सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने केवल 32 दिनों के अन्दर स्पुतनिक अभियान का दूसरा उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर विश्व को पुनः आश्चर्य में डाल दिया. इतने कम समय के भीतर दूसरा अभियान वैसे ही कम आश्चर्य की बात नहीं थी, पर इस अभियान की जो सबसे हैरत में डालने वाली बात थी इस अभियान में जीवित पशु को अन्तरिक्ष भेजना – दुसरे शब्दों में कहें तो मानव को अन्तरिक्ष भेजने की चुनौती का सामना करने की दिशा में पहला कदम . इस उपग्रह में लाइका (Laika) नामक कुतिया को अन्तरिक्ष भेजा गया और वह पहली ऐसी जीवित प्राणी बनी जो अन्तरिक्ष में पहुची, ये अलग बात है कि दुर्भाग्यवश वह अन्तरिक्ष में ज्यादा समय जीवित नहीं रह सकी. 

स्पुतनिक-2 (Sputnik-2), नामक विश्व का दूसरा कृत्रिम उपग्रह 3 नवम्बर 1957 को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया. सोवियत संघ का यह उपग्रह लगभग 4 मीटर ऊँचा था जिसका उपरी आकर एक कोने की तरह का था. इस बार जीवित प्राणी के साथ इस उपग्रह में बहुत से नए यन्त्र लगाए गए थे ताकि यान के अनेक पहलुओं पर नजर रखी जा सके और उसे कण्ट्रोल किया जा सके.

इस यान में रेडियो ट्रांसमीटर, तापमान नियंत्रण करने के लिए प्रणाली, एक टेलीमेट्री प्रणाली, प्रोगाम इकाई जैसे कई यूनिट थे. लाइका के लिए एक अलग से केबिन बनाया गया था. इस उपग्रह से हरेक चक्कर में कुल 15 मिनट के लिए डाटा धरती में स्थित कण्ट्रोल रूम तक ट्रान्सफर किया जाता था. साथ ही इसमें सूर्य के विकिरण और कॉस्मिक किरणों के अध्ययन के लिए दो फोटोमीटर लगाए गए थे.

मजे की बात यह है कि संसार का पहला उपग्रह प्रक्षेपित कर पूरी दुनिया को स्तंभित कर देने वाले यह दोनों  अभियान (स्पुतनिक-1 और स्पुतनिक-2) सोवियत संघ के मुख्य उपग्रह प्लान का हिस्सा नहीं थे. मुख्य प्लान बाद में स्पुतनिक-3 के रूप में दुनिया के सामने आया. वास्तव में सोवियत संघ के मुख्य प्लान की सफलता में कुछ संदेह था क्यूंकि मुख्य उपग्रह का आकर बहुत बड़ा था. इसलिए इस बड़े पैमाने की योजना के बदले कोरोलेव (स्पुतनिक सीरीज के निर्माता) ने दो छोटे उपग्रह का प्रस्ताव रखा. एक बात और भी है कि स्पुतनिक सीरीज के इन दोनों उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की एक वजह अमेरिका से पहले अन्तरिक्ष क्षेत्र में बाजी मारने की भी थी, जिसमे वे पूर्ण रूप से सफल भी रहे.

इस अभियान की सबसे महत्पूर्ण सफलता किसी जीवित प्राणी को अन्तरिक्ष में सुरक्षित ले जाने की थी जिसमें यह मिशन सफल भी रहा. उस समय सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने लाइका के दस दिनों पर जीवित रहने की आशा की थी. कक्षा में उपग्रह के स्थापित होने के पश्चात् के प्रथम दो चक्कर तक लाइका पूर्णतः सुरक्षित थी परन्तु तीसरे चक्कर के पश्चात केबिन का तापमान बढ़ने लगा और कुछ ही घंटों में उच्च तापमान की वजह से उसकी मृत्यु हो गयी. यह जानकारी सोवियत युग के बाद पता चली, उस समय यह बताया गया था कि वह लगभग एक सप्ताह तक जीवित थी.

स्पुतनिक-2 की एक प्रमुख खोज और रही थी – उसने धरती के रेडिएशन (विकिरण) बेल्ट का पता लगा लिया था और उससे होकर गुजरा भी. परन्तु वह कोई महत्वपूर्ण जानकारी न दे सकता क्यूंकि वह रुसी ट्रैकिंग स्टेशन से काफी दूर था. अन्यथा अन्तरिक्ष की दुनिया की एक अत्यंत महत्वपूर्ण खोज सोवियत संघ के नाम होती. यहाँ पर अमेरिका के पहले उपग्रह एक्स्प्लोरर–1 (Explorer-1) ने बाजी मार ली और इस बेल्ट का नाम वान-एलन बेल्ट (Van-Allen Radiation Belt) रखा गया.

अपनी यात्रा पूर्ण कर स्पुतनिक-2, 14अप्रैल 1958 को धरती पर वापस लौटा. सोवियत संघ के इन दोनों सफल अभियानों ने जहाँ सोवियत संघ के स्वप्न को मजबूती प्रदान की वहीं अमेरिका की नींद भी उड़ सी गयी. इन दोनों देशों के बीच लगी इस होड़ से अल्प समय में ही अनगिनत अन्तरिक्ष अभियान का एक लम्बा सिलसिला चल पड़ा और अन्तरिक्ष के प्रति दीवानगी बढती ही चली गयी.

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