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हैली पुच्छल तारा (1986) |
हैली पुच्छल तारा (आधिकारिक नाम 1P/Halley) शायद पुच्छल तारों की दुनिया का सबसे लोकप्रिय नाम है, जो हर 75-76 वर्षों में धरती से नजर आता है. वैज्ञानिक भाषा में ऐसे पुच्छल तारे जिनकी परिक्रमा अवधि 200 वर्षों से कम होती है, उन्हें लघु-अन्तराल का पुच्छल तारा या धूमकेतु कहा जाता है. हैली लघु-परिक्रमा अवधि का ऐसा एकमात्र पुच्छल तारा है जो धरती से नग्न आखों से देखा जा सकता है. पिछली बार यह 1986 में नजर आया था और अब 2061 के मध्य में इसके नजर आने की सम्भावना है.
हैली का आतंरिक सौर-माडल में इस आवर्ती वापसी का खगोलशास्त्रियों द्वारा अध्ययन और जानकारी संग्रहण का 240 ईसा पूर्व से प्राप्त होता है. चीनी, बेबीलोनियन, और यूरोप के लोगों द्वारा इसका रिकॉर्ड रखा गया था परन्तु वे इस बारे में एकमत नहीं थे कि ये एक ही पिंड है. इसके आवर्ती काल का प्रथम निर्धारण 1705 में अंग्रेज खगोलविद एडमंड हैली के द्वारा किया गया , जिनके नाम पर ही इसका नामकरण किया गया.
1986 में इसके आगमन के समय हैली का अन्तरिक्ष यान द्वारा विस्तृत अध्ययन किया गया. पहली बार किसी धूमकेतु (पुच्छल तारा) का इस तरह वृहद् अध्ययन करने का प्रयास किया गया था जिससे प्राप्त आंकड़ो से इसके नाभिक (केन्द्रक) की संरचना का ज्ञान प्राप्त हुआ. इसमें इन रहस्यमयी पिंडों के कोमा और पूँछ की उत्पत्ति की भी प्रमाणिकता सिद्ध हुयी. इन अवलोकनों से इन पिंडों के बारे में लम्बे समय से चली आ रही काफी सारी धारणाओं को पुख्ता प्रमाण मिला और वे सत्य साबित हुयीं . फ्रेड व्हिप्पी की डर्टी स्नोबॉल सिद्धांत के बारे में नवीन जानकारी मिली, जिसमे उन्होंने हैली के बारे में अनुमान लगाया था की हैली वाष्पशील बर्फ से बना है जो पानी, कार्बन डाई-ऑक्साइड, अमोनिया और धुल के कणों का मिश्रण है. इस अभियान के बाद इस बात के पर्याप्त सबूत मिले की हैली मुख्य रूप से अवाष्पशील पदार्थों से बना है और उसका एक छोटा भाग ही बर्फ से बना है.
इन पिंडों का आंतरिक सौर मंडल में प्रवेश सदा से कौतुहल का विषय रहा है. सदियों तक इन्हें अनिष्ट के सूचक के तौर पर देखा जाता था. इनके परिक्रमा पथ के बारे में भी अनेक धारणाएं रही हैं. ज्यादातर लोग ये मानने को तैयार ही नहीं थे कि ये धूमकेतु लम्बे अंडाकार पथों में सूर्य की परिक्रमा करते हैं, वे यही मानते थे कि ये सीधी रेखा में गमन करते हैं. इसका एक सीधा अर्थ ये भी था कि कोई भी पुच्छल तारा केवल एक बार ही आएगा और उसकी वापसी का कोई प्रश्न ही नहीं था. परन्तु 1687 में आइजेक न्यूटन की महान किताब ‘प्रिन्सिपिया’, जिसमें उन्होंने गुरुत्वाकर्षण और गति के नियमों का उल्लेख किया था, के बाद इस
हैली का आतंरिक सौर-माडल में इस आवर्ती वापसी का खगोलशास्त्रियों द्वारा अध्ययन और जानकारी संग्रहण का 240 ईसा पूर्व से प्राप्त होता है. चीनी, बेबीलोनियन, और यूरोप के लोगों द्वारा इसका रिकॉर्ड रखा गया था परन्तु वे इस बारे में एकमत नहीं थे कि ये एक ही पिंड है. इसके आवर्ती काल का प्रथम निर्धारण 1705 में अंग्रेज खगोलविद एडमंड हैली के द्वारा किया गया , जिनके नाम पर ही इसका नामकरण किया गया.
1986 में इसके आगमन के समय हैली का अन्तरिक्ष यान द्वारा विस्तृत अध्ययन किया गया. पहली बार किसी धूमकेतु (पुच्छल तारा) का इस तरह वृहद् अध्ययन करने का प्रयास किया गया था जिससे प्राप्त आंकड़ो से इसके नाभिक (केन्द्रक) की संरचना का ज्ञान प्राप्त हुआ. इसमें इन रहस्यमयी पिंडों के कोमा और पूँछ की उत्पत्ति की भी प्रमाणिकता सिद्ध हुयी. इन अवलोकनों से इन पिंडों के बारे में लम्बे समय से चली आ रही काफी सारी धारणाओं को पुख्ता प्रमाण मिला और वे सत्य साबित हुयीं . फ्रेड व्हिप्पी की डर्टी स्नोबॉल सिद्धांत के बारे में नवीन जानकारी मिली, जिसमे उन्होंने हैली के बारे में अनुमान लगाया था की हैली वाष्पशील बर्फ से बना है जो पानी, कार्बन डाई-ऑक्साइड, अमोनिया और धुल के कणों का मिश्रण है. इस अभियान के बाद इस बात के पर्याप्त सबूत मिले की हैली मुख्य रूप से अवाष्पशील पदार्थों से बना है और उसका एक छोटा भाग ही बर्फ से बना है.
इन पिंडों का आंतरिक सौर मंडल में प्रवेश सदा से कौतुहल का विषय रहा है. सदियों तक इन्हें अनिष्ट के सूचक के तौर पर देखा जाता था. इनके परिक्रमा पथ के बारे में भी अनेक धारणाएं रही हैं. ज्यादातर लोग ये मानने को तैयार ही नहीं थे कि ये धूमकेतु लम्बे अंडाकार पथों में सूर्य की परिक्रमा करते हैं, वे यही मानते थे कि ये सीधी रेखा में गमन करते हैं. इसका एक सीधा अर्थ ये भी था कि कोई भी पुच्छल तारा केवल एक बार ही आएगा और उसकी वापसी का कोई प्रश्न ही नहीं था. परन्तु 1687 में आइजेक न्यूटन की महान किताब ‘प्रिन्सिपिया’, जिसमें उन्होंने गुरुत्वाकर्षण और गति के नियमों का उल्लेख किया था, के बाद इस
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हैली का परिक्रमा पथ |
सम्बन्ध में सोच का परिवर्तन आया. भले ही इन पिंडों के सम्बन्ध में उनके सिद्धांत पूर्ण रूप से सहीं नहीं थे फिर भी 1680 और 1681 में दिखे दो पुच्छल तारों के बारे में उन्होंने अनुमान लगाया था की वे दोनों एक ही पिंड हैं जो सूर्य की परिक्रमा के पूर्व और पश्चात नजर आया था.
बाद में उनके मित्र एडमंड हैली ने इस नए नियम के आधार पर पुच्छल तारों के परिक्रमा पथ पर बृहस्पति और शनि के प्रभाव का अध्ययन किया और पाया कि 1682 में नजर आये धूमकेतु का परिक्रमण 1531 और 1607 में नजर आये धूमकेतु की तरह था. वे इस नतीजे पर पहुचे कि ये तीनों एक ही पिंड हैं जो लगभग 75-76 वर्ष बाद पुनः नजर आये थे. उन्होंने इस आधार पर इसके 1758 में वापस आने की भविष्यवाणी भी की थी जो सच साबित हुयी भले ही यह 1958 के दिसम्बर के अंत में नजर आया. इस देरी के लिए उपरोक्त दोनों विशाल ग्रहों को कारण माना गया और तब से हर 75-76 वर्षों में यह धूमकेतु नजर आता है. हैली भले ही इसे देखने को जीवित नहीं रहे परन्तु इसके आगमन से धूमकेतु के सूर्य की परिक्रमा का सिद्धांत सच साबित हुआ और न्यूटन के महान सिद्धांतों ने अपना महत्त्व और मजबूती से स्थापित किया. उनके सम्मान में 1759 को इसका नामकरण किया गया.
हम लोगों में से अनेकों ने इसे देखा भी होगा और अनेक इसे पुनः देखने के लिए इस धरा पर ना रहे परन्तु विज्ञान जगत के इस सबसे कौतुहल से भरे रहस्यमयी पिंड के प्रति अन्तरिक्ष विज्ञान के शोधकर्ताओं का प्रेम सदियों तक कायम रहेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है.
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