Thursday, May 14, 2015

C/2011 W3 या 2011 का ग्रेट कॉमेट - कॉमेट लवजॉय 3 (Comet Lovejoy 3)

कॉमेट लवजॉय (२१ दिसम्बर २०११
को इंटरनेशनल स्पेस
स्टेशन से लिया गया चित्र )
कॉमेट लवजॉय , जिसका आधिकारिक नाम C/2011 W3 है,  एक लम्बी-अवधि का धूमकेतु है. यह क्रोइट्स सनग्रेज़र (ऐसे धूमकेतु जो सूर्य के बेहद नजदीक से गुजरते हैं, इनका नाम जर्मन वैज्ञानिक क्रोइट्स के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इन्हें एक बड़े धूमकेतु के टुकड़े बताते हुए इन्हें सम्बंधित साबित किया था) की श्रेणी में आता है. इसकी खोज सबसे पहले ऑस्ट्रिलिया के शौकिया एस्ट्रोनॉमर टेरी लवजॉय ने 27 नवम्बर 2011 में की थी जिनके द्वारा खोजा यह तीसरा धूमकेतु था, बाद में उन्होंने अभी तक दो और यानि कुल पांच धूमकेतुओं की खोज की है.  भले ही लवजॉय ने इसे नवम्बर में ही देख लिया था परन्तु इसके पांच दिन बाद तक इसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी, जब 1 दिसम्बर को न्यूज़ीलैण्ड के माउंट जॉन यूनिवर्सिटी ऑब्जर्वेटरी से इसे देखा गया तब अगले दिन माइनर प्लेनेट सेंटर के द्वारा इसकी विधिवत घोषणा की गयी. अंतरिक्ष यानों और उपग्रहों में सबसे पहले स्टीरियो-ए अन्तरिक्ष यान ने इसे 3 दिसम्बर और सोहो ने 14 को देखा. इस समय जब यह सूर्य की नजदीकी दूरी पर बढ़ रहा था, छः उपग्रह इसका अध्ययन कर रहे थे. सोहो के द्वारा लिए गए चित्र में एक साथी उपग्रह भी नजर आया था जो कि आकार में बहुत छोटा था. बाद में दोनों स्टीरियो उपग्रहों के द्वारा ली गयी तस्वीरों से भी इसकी पुष्टि हो गयी. क्रोइत्ज़ समूह के धूमकेतुओं के लिए यह कोई नयी बात नहीं थी, यह माना गया कि यह लवजॉय कॉमेट का ही टुकड़ा है जो दशकों पहले उससे टूटकर अलग हुआ होगा.

यह एक बेहद चमकीला धूमकेतु था जिसमे एक स्थिति ऐसी भी आई जब इसके चमक का परिमाण शुक्र ग्रह के बराबर हो गया था. सोहो का द्वारा देखा गया यह अब तक का सबसे चमकीला धूमकेतु था. परन्तु इसके पश्चात भी सूर्य से बेहद नजदीक होने के कारण इसे नग्न आँखों से देख पाना संभव नहीं था. अपनी परिक्रमा में सूर्य-नीच (Perihelion - वह स्थिति जब सूर्य की परिक्रमा करता कोई पिंड सूर्य से अपनी सर्वाधिक नजदीकी दूरी पर होता है) की स्थिति में वह सूर्य के कोरोना से होकर 16 दिसम्बर 2011 को गुजरा.  सूर्य से इतनी नजदीकी मुलाक़ात के बाद इसके टुकड़ों में टूटकर नष्ट होने की आशंका व्यक्त की गयी थी. साथ ही इसका नाभिक किसी भी अवलोकन में नजर नहीं आया था, जिसने इस संदेह को और बल दिया. परन्तु बाद के विश्लेषणों ने यह सिद्ध किया कि भले ही नाभिक का आकार बहुत कम रह गया हो, यह बच गया है और एक बार पुनः अपनी 622 वर्षों की लम्बी यात्रा के पश्चात 2633 में यह पुनः सूर्य से नजदीकी दूरी पर आएगा.
2012 में कॉमेट लवजॉय के अंडाकार परिक्रमापथ की गणना करने वाले दो वैज्ञानिकों के अनुसार यह धूमकेतु 1329 में सूर्य के नजदीक पहुचे एक सनग्रेज़र का अंश है. इन्होने प्रस्तावित किया कि मूल सनग्रेज़र संभवतः 467 में नजर आया, सूर्य के ज्वारीय बल के कारण टुकड़े में बंट गया. बड़ा भाग 1106 के ग्रेट कॉमेट के रूप में नजर आया परन्तु दुसरे भाग ने लम्बा परिक्रमा पथ पकड़ लिया और 1329 में सूर्य-नीच की स्थिति में पंहुचा. यह दूसरा भाग उस वर्ष पुनः विभाजित हुआ. मुख्य भाग के लिए उन्होंने 2200 वर्ष की परिक्रमा अवधि की गणना की जो संभवतः और टूटे हुए टुकड़ों के समूह के रूप में होगा. उनकी इस गणना के अनुसार छोटा भाग कम परिक्रमा अवधि रहेगा  और 21वी सदी के प्रारंभ में आंतरिक सौर मंडल में वापस आएगा. इसका ही टूटा हुआ भाग कॉमेट लवजॉय है और बहुत से अन्य टुकड़ों के बारे में उन्होंने संदेह जाहिर किया है जो संभवतः निकट भविष्य में सूर्य के समीप पहुचेंगे. अब ये अनुमान कितना सहीं है ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

SOHO उपग्रह के प्रक्षेपण की 16वी सालगिरह के समय घोषित होने के कारण इस पुच्छल तारे को 'जन्मदिवस का महान पुच्छल तारा' (The Great Birthday Comet of 2011) भी कहा गया और चूँकि उस वर्ष क्रिसमस के उत्सव के समय यह आसमान की शोभा बढ़ा रहा था यानी यह धरती से नजर आता था इसलिए इसे 2011 के  क्रिसमस कॉमेट (The Great Christmas Comet of 2011) के नाम से भी पुकारा जाता है.

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