गैलिलियो स्पेस क्राफ्ट द्वारा लिया गया मेटीस का चित्र |
मेटीस बृहस्पति (जुपिटर) के ज्ञात समस्त चंद्रमाओं में सबसे अन्दर की ओर स्थित है अर्थात यह अपने ग्रह के सबसे पास स्थित चन्द्रमा है जो बृहस्पति से महज 128000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
मेटीस की खोज स्टीफन सीनोट के द्वारा वायेजर 1 द्वारा लिए गए चित्रों के अध्ययन से 1979 में की गयी थी. 1983 में आधिकारिक रूप से इसे मेटीस का नाम दिया गया जो देवताओं के गुरु ज़ीउस (ग्रीक देवता जो रोमन देवता जुपिटर के समान है) की प्रथम पत्नी थी. वायेजर द्वारा लिए गए चित्र में यह चन्द्रमा केवल एक बिंदु के रूप में दिखाई देता था जिससे इसके बहुत छोटे आकार का पता चला था परन्तु कोई भी विस्तृत जानकारी प्राप्त नहीं हो पायी थी जब तक गैलिलियो अंतरिक्ष यान ने अपने अभियान के अनुसार वर्ष 1998 में मेटीस की सतह के विस्तृत चित्र भेजे और हमें मेटीस की संरचना को समझने का अवसर प्राप्त हुआ.
मेटीस, अपने ग्रह बृहस्पति से ज्वारीय रूप से बंधा हुआ है और इसके आकार में विषमता भी है. साथ ही यह बृहस्पति की एक परिक्रमा अपने ग्रह के एक दिन से भी कम समय में कर लेता है. ऐसा करने वाला एकमात्र दूसरा उपग्रह अद्रास्टिया है. इसका परिक्रमा पथ जुपिटर के मुख्य वलय के अन्दर स्थित है इसलिए इसे वलयों के पदार्श के प्रमुख स्त्रोत के रूप में भी देखा जाता है जो कि शायद उल्कापिंडों के टकराव के कारण इससे अलग हुए हों.
आकार में अत्यधिक विषमता लिया यह उपग्रह बहुत छोटा केवल 40 किलोमीटर की व्यास का है और यह बृहस्पति का दूसरा सबसे छोटा उपग्रह है. इसकी संरचना के बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसा माना जाता है कि यह मुख्य रूप से पानी की बर्फ से बना है. इसकी धरातली क्रेटर यानी गड्ढों से भरी हुयी है और यह लाल रंग का नजर आता है. जैसा की पूर्व में कहा गया है इसके गोलार्ध अत्यधिक विषमता लिए हुए हैं इसका कारण संभवतः इसके गोलार्ध पर टकराव की तीव्रता और संख्या है जिसके कारण शायद इसके आतंरिक भाग से काफी सामग्री इसके उभार वाले हिस्से पर निकल आई है.
मेटीस, बृहस्पति के आतंरिक चार चंद्रमाओं में से एक है और केवल 128000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसके कारण जुपिटर की ज्वारीय बल इसके कक्ष को धीरे धीरे कम करता जा रहा है साथ ही बेहद नजदीक होने के कारण यहाँ से जुपिटर का केवल 31 % भाग ही मेटीस से नजर आता है जो कि किसी भी चन्द्रमा की तुलना में सबसे कम है. यहाँ से बृहस्पति केवल एक अर्धवृत्त के रूप में नजर आता है .
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