Thursday, August 15, 2013

धूमकेतु या पुच्छल तारे (Comet)


धूमकेतु या पुच्छल तारे सौर परिवार के वे सदस्य हैं जो किन्ही कारणों से ग्रहों, उपग्रहों या क्षुद्रग्रहों में परिवर्तित नहीं हो सके. इन्हें प्राचीन काल से जाना जाता रहा है क्योंकि सूर्य के समीप आने पर ये सबसे चमकीले पिंड बन जाते हैं. सबसे पहले देखे जाने वाला और सबसे प्रसिद्ध धूमकेतु है – हैली का पुच्छल तारा या हैली का धूमकेतु. इसे चीन में इसा से भी 240 वर्ष पूर्व देखे जाने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं.

धूमकेतु का केन्द्रक या स्थायी भाग मुख्यतः बर्फ, गैस, धूल और अन्य ठोस पदार्थों से ना होता है. जब ये धुमंतू पिंड सूर्य के नजदीक से गुजरते हैं तो सूर्य की अपार ऊर्जा इसके कणों को तोड़ देती है और इन कणों से जलने से तीव्र मात्र में गैस और धुल बाहर निकलती है जो इसकी पूंछ का निर्माण करती है. धूमकेतु सामान्यतः बाह्य ग्रहों के निर्माण के समय बची हुए बर्फीले अवशेष हैं.

अनियमित आकृतियों के इन रहस्यमय पिंडो का परिक्रमा पथ अंडाकार होता है. ये धूमकेतु प्लूटो की कक्षा के बाहर से होकर सौरमंडल के अन्यंत आतंरिक भाग तक पहुच जाते हैं. इन धूमकेतुओं में कुछ का परिक्रमण काल निश्चित है तो कुछ का अनिश्चित. कुछ धूमकेतु तो शायद एक बार परिक्रमा के बाद वापस भी नहीं हो पाते. ऐसा माना जाता है कि सौरमंडल की सीमा में स्थित क्षेत्र से ये ऊर्जा ग्रहण करते हैं. जब किसी धूमकेतु की गैस और बर्फ ख़त्म हो जाती तो उसका केवल चट्टानी भाग बचा रह जाता है. इस स्थिति में ये संभवतः किसी ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से बंधकर सौरमंडल के आतंरिक भाग में क्षुद्र ग्रहों के रूप में रह जाते हैं

उर्ट बादल को धूमकेतुओं का घर कहा जाता है. उर्ट बादल और इसके आतंरिक क्षेत्र में (जिसे क्यूपर बेल्ट के नाम से जाना जाता है) करोड़ों की संख्या में ऐसे धूमकेतुओं के होने की सम्भावना है. अभी तक अनेकों धूमकेतुओं को सारणीबद्ध किया जा चूका है परन्तु इनके बारे में पर्याप्त जानकारी आज भी हमें नहीं है.

अनेक देशों में इन्हें अपशकुन या बुराई के प्रतिक के रूप में देखा जाता है परन्तु ये सौरमंडल के वे रोचक सदस्य हैं जिनके प्रति वैज्ञानिक जगत कौतुहल की दृष्टि से देखता है क्योंकि ये सौरमंडल के प्रारंभिक अवस्था से विद्यमान हैं. कुछ सिद्धांत इन्हें ही पृथ्वी पर जीवन के वाहक के रूप में देखते हैं.
हैली का धूमकेतु प्रत्येक 76वर्षों के पश्चात वापस आता है और शायद आने वाले लाखों वर्षों तक इसका जीवन चलता रहेगा. 1994 में  बृहस्पति से टकराने वाला शूमेकर लेवी धूमकेतु भी विज्ञान जगत में प्रसिद्ध है. आज भी इस धूमकेतु से हुए महाकाय ग्रह के टक्कर की निशानी बृहस्पति पर अंकित है. 

2 comments:

  1. शुक्रिया शाहिद भाई,
    इस ब्लॉग पर पहले कमेन्ट के लिए. अंतरिक्ष विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसके बारे में मैं जितना पढ़ता हूँ उतना ही और जानने की ख्वाहिश होती है.

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