Sunday, August 18, 2013

हैली पुच्छल तारा या कोमेट हैली (Halley's Comet)

हैली पुच्छल तारा या कोमेट हैली
हैली पुच्छल तारा या कोमेट हैली विज्ञान जगत में सर्वाधिक प्रसिद्ध पुच्छल तारा है जो लगभग प्रत्येक ७६ वर्ष के पश्चात पृथ्वी से दिखाई देता है. हैली इतने कम अंतराल में सूर्य के नजदीक आने वाले एकमात्र धूमकेतु है जो पृथ्वी से नग्न आखों से भी देखा जा सकता है. कुछ अन्य पुच्छल तारे भी नग्न आखों से देखे गए हैं परन्तु उनकी वापसी का समय हजारों वर्षों का है या फिर वे कभी वापस ही नहीं आयेंगे.

हैली वो पहला पुच्छल तारा था जिसके आवर्ती (निश्चित अंतराल में घटित होने) का पता चला.   दर्ज इतिहास के अनुसार हैली के आतंरिक सौर मंडल में प्रवेश और पृथ्वी से उसके दिखाई देनी की घटना का निरिक्षण और दस्तावेजीकरण कम से कम २४० ईसा पूर्व किया गया है. चीन, बबीलोन और मध्य यूरोप के खगोलवेत्ताओं के इसका अध्ययन किया परन्तु एक ही धूमकेतु के पुनः आगमन का अनुमान वे नहीं लगा सके. धूमकेतुओं के परिक्रमण के बारे में महान वैज्ञानिक सर आइजेक न्यूटन ने प्रारंभिक चर्चा दर्ज की थी जब उन्होंने १६८० और १६८१ में नजर आये पुच्छल तारे के बारे में कहा कि ये दोनों एक ही हैं और सूर्य का चक्कर लगाकर वापस लौटा है, परन्तु इस पर आगे का कार्य न्यूटन के मित्र एडमंड हैली ने किया. उन्होंने न्यूटन के महान गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत को लेकर इन रहस्यमय पिंडों की कक्ष पर बृहस्पति और शनि के गुरुत्वाकर्षण प्रभावों का अध्ययन किया. ऐतिहासिक दर्ज घटनाओं को साथ लेकर उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि १६८२ में नजर आये एक दूसरे पुच्छल तारे और १५३१ तथा १६०७ में नजर आया पुच्छल तारा यह तीनों एक ही हैं जो लगभग ७६ वर्ष की अवधि के पश्चात वापस आते हैं. उस समय उन्होंने इसकी वापसी के लिए १७५८ का वर्ष निर्धारित किया था यद्यपि ये कॉमेट १७५८ को दिसम्बर में नजर आया. हैली की भविष्यवाणी सहीं साबित हुयी परन्तु वे इसकी वापसी देखने के लिए जीवित नहीं रहे. हैली के परिक्रमण काल का सबसे पहला अनुमान लगेने के कारण  इस अंग्रेज खगोलवेत्ता एडमंड हैली के सम्मान में इसका नाम हैली धूमकेतु रखा गया. अंतिम बार हैली का यह रहस्यमय तारा १९८६ में दिखाई पड़ा था और अब २०६१ के मध्य नजर आएगा.

जब १९८६ में हैली हमारे नजदीक से होकर गुजरा तो विज्ञान जगत ने इस धूमकेतु के अध्ययन की पूर्ण तैयारी कर ली थी. इस अध्ययन के कारण हमें पहली बार किसी धूमकेतु के नाभिक और कोमा तथा पूँछ के निर्माण के बारे में स्पष्ट तौर पर पता चल पाया. इस विश्लेषण ने कई सारे पूर्वानुमानों को सच साबित किया. फ्रेड व्हिपल ने धूमकेतु के सम्बन्ध में ‘डर्टी स्नो बॉल’ का सिद्धांत दिया था की ये रहस्यमय पिंड वाष्पशील गैसों के मिश्रण से बने हैं – जैसे की पानी, कार्बन डाइऑक्साइड और अमोनिया, साथ ही इनमे धूल की भी सघन मात्रा होगी. हैली के नजदीकी अध्ययन ने यह भी बताया कि हैली की सतह धूल से भरी है और यह अवाष्प शील सामग्रियों से बना है और इसका केवल थोडा ही भाग ही बर्फीला है.

हैली की कक्षा उत्केन्द्रीय है इसलिए इसका परिभ्रमण काल ७४ से ७९ वर्ष तक भी दर्ज किया गया है. चूँकि इसका परिक्रमण काल २०० वर्षों से कम है इसलिए इसे लघु काल आवर्ती पुच्छल तारों के दल में रखा गया है. यह भी पाया गया है की संभवतः हैली पहले दीर्ध कालीन धूमकेतु था जिसका पथ महाकाय ग्रहों के कारण परिवर्तित हो गया है. अगर यह तर्क सही हैं तो हैली का उद्गम ऊर्ट बादलों से हुआ होगा, जबकि अन्य लघु कालीन धूमकेतु क्यूपर बेल्ट से जन्म लेते हैं.

जियोटो और वेगा अंतरिक्ष अभियानों ने वैज्ञानिकों को हैली के इस धूमकेतु के सतह और संरचना के बारे में  सर्वप्रथम जानकारियों से अवगत कराया. अन्य कॉमेट की तरह जब हैली सूर्य के निकट जाता है तो इसके वाष्पशील अवयव इसके नाभिक से अलग होने लगते हैं. इसके कारण इसमें कोमा संरचना विकसित होने लगती है जो १०००० किलोमीटर तक की होती है. इस कीचड युक्त बर्फ के वाष्पीकरण के कारण धूल अलग हो जाती है और गैस के साथ नाभिक से दूर उड़ने लगती है. कोमा में अपस्थित गैस के कण सूर्य के प्रकाश को अवशोषित करते है और उन्हें अलग तरंग-दैर्ध्य में उत्सर्जित करते हैं. इस प्रक्रिया में कोमा दृश्य हो जाती है. सौर हवाओं के दबाव से कोमा से उत्सर्जित होकर पदार्थ एक लम्बी पूँछ का निर्माण करते हैं जो १०० मिलियन किलोमीटर या उससे भी लम्बी हो सकती है.भले ही हैली का कोमा बहुत बड़ा है परन्तु इसका नाभिक अत्यंत छोटा है. केवल १५ किलोमीटर लम्बा, ८ किलोमीटर चौड़ा और शायद ८ किलोमीटर मोटा है.

अब वैज्ञानिकों को 2061 तक इंतज़ार करना पड़ेगा, जब मानव सभ्यता का सबसे प्राचीन ज्ञात पुच्छल तारा पुनः अपनी रहस्यमयी उपस्थिति दर्ज कराएगा, तब शायद इसके और रहस्यों से पर्दा उठे और इन अनोखे पिंडो के बारे में जानकारी में और इजाफा हो सके.

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