Thursday, August 15, 2013

मंदाकिनी या आकाशगंगा (Galaxy)

हमारी आकाशगंगा - द मिल्की वे
गैलेक्सी या मंदाकिनी अरबों सितारों और उनके परिवार का एक विशाल समूह है जो आपस में गुरुत्वाकर्षण से जुड़े हुए हैं और एक सामान्य केंद्र के चारों और चक्कर लगा रहे हैं. ब्रम्हाण्ड में अभी तक की खोज के अनुसार लगभग सौ अरब गैलेक्सी के होने का अनुमान है. इन सभी गैलेक्सियों में से प्रत्येक में करोड़ों – अरबों तारे और उनके परिवार होने का अनुमान है. इन खगोलीय पिंडों के अलावा गैलेक्सी में गैस और खगोलीय धूल भी प्रचुर मात्रा में है.



ज्यादातर गैलेक्सियों का केंद्र तारों का विशाल भण्डार है जिसे नाभिक कहा जाता है. इस नाभिक के चारों ओर एक गोलाकार डिस्क जैसी संरचना होती है जिससे ये नाभिक जुड़ा होता है. सामान्यतः गैलिक्सियों को उनके आकार के आधार पर तीन भागों में बांटा गया है – सर्पिलाकार या कुंडली दार, अंडाकार तथा अनियमित. अनियमित आकार वाली गैलेक्सी के बारे में ये माना जाता है कि ये अभी निर्माण की अवस्था में है. हमारी आकाशगंगा पहले प्रकार में आती है.

गैलेक्सी या मंदाकिनी या आकाशगंगा कैसे बनीं ?
वैज्ञानिकों का मानना है कि बिग बैंग के कारण वितरित हुयी गैस का समूह धीरे धीरे ठन्डे होकर एकत्रित होने लगे होने लगे जिनसे युवा आकाशगंगा बनी जिसे विज्ञान की भाषा में प्रोटो गैलेक्सी कहा जाता है. कालांतर में ये प्रोटो गैलेक्सियां अलग-अलग प्रकार से विकसित हुई. कुछ के केंद्र में गैसों का विशाल समूह था जिससे तीव्र विष्फोट हुआ. इन विस्फोटों ने अतिरिक्त बची गैसों को गैलेक्सी से बाहर कर दिया. इस स्थिति में शेष बची इन गैसों से केवल अनगिनत सितारे बने. इस स्थिति में बनी गैलेक्सियां अंडाकार गैलेक्सी के रूप में विकसित हुईं. कुछ प्रोटो गैलेक्सियों में केवल अल्प मात्र में ही ये गैसों रह पायीं. चूँकि इनका केंद्र छोटा था अतः विस्फोट भी बहुत ही कम मात्रा में संभव हो पाए जिससे शेष बचीं गैसें गैलेक्सी से बाहर न होकर नए बने सितारे के साथ ही रह गयीं. कालांतर में इस प्रकार की गैलेक्सियां स्पाइरल या कुंडलीदार या सर्पाकार गैलेक्सी के रूप में विकसित हुईं. कुछ गैलेक्सियां ऐसी भी हैं जिनका आकार  अनियमित है अर्थात इनके आकार में परिवर्तन जारी है. ये वे प्रोटो गैलेक्सियां हैं जिनमे अभी भी विस्फोट जारी है अर्थात ये निर्माण की प्रकिया से गुजर रही हैं.  

जैसा निरीक्षणों से पता चला है कि सामान्यतः ये मंदाकिनियाँ अपना आकार बनाए रखती हैं परन्तु इस विशाल ढांचे का एक निश्चित आकृति को बनाये रखने के पीछे का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है शायद यह इनके घूर्णन के वेग और सितारों की संख्या तथा उनके बनने की गति पर निर्भर करती है. ये सभी गैलेक्सी एक दुसरे से दूर भागी जा रही हैं और ज्यों-ज्यों ये दूर जाते जा रही हैं इनकी गति वैसे-वैसे तेज होती जा रही है.

एंड्रोमेडा - हमारे सबसे पास की गैलेक्सी
हमारी गैलेक्सी या मंदाकिनी का नाम आकाशगंगा या मिल्की वे है जिसमे हमारे सूर्य और सौर परिवार स्थित है. इस सौर परिवार के अलावा वे सभी सितारे जिन्हें हम नग्न आखों से देख सकते हैं, इस गैलेक्सी का ही अंग हैं. एक अनुमान के अनुसार हमारी आकाशगंगा में ३० अरब या उससे भी अधिक सितारे हैं जिनमे हमारा सूरज एक सितारा मात्र है.

हमारे सबसे पास की गैलेक्सी एंड्रोमेडा है जिसे देवयानी के नाम से भी जाना जाता है. यह गैलेक्सी एक तरह से हमारी अपनी गैलेक्सी आकाशगंगा की सदृश्य है और इसके अध्ययन से ही हमें अपनी गैलेक्सी के बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करने में सहायता प्राप्त हुयी है.

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