पृथ्वी और चाँद के बीच की लगातार बढ़ती दूरी से दिन हुए लम्बे |
ज्वार-भाटा की अवधारणा से हम सभी अपने स्कूल के समय से ही
परिचित हैं. सामान्य शब्दों में पृथ्वी पर स्थित सागरों के जल-स्तर का अपने सामान्य
स्तर से ऊँचा उठना (ज्वार) और फिर पुनः नीचे आना (भाटा) कहलाता है. लेकिन
वास्तविकता में यह ज्वार-भाटा की अवधारणा धरातल और वायु पर भी लागू होती है. सूर्य,
पृथ्वी और चन्द्रमा का परस्पर गुरुत्वाकर्षण ही इस प्राकृतिक घटना का कारण है. वैसे
पृथ्वी पर इस घटना का मुख्य कारण चन्द्रमा का पृथ्वी की परिक्रमा करना है. जब
चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी के सीध में होता है तो उच्च-ज्वार और जब समकोणीय अवस्था
में होता है तो निम्न-ज्वार आता है.
पर ज्वार, ब्रम्हांड में और भी काफी सारे प्रभाव लाते हैं. वे
हमारी पृथ्वी को गर्म करते हैं. उत्पन्न ऊर्जा की यह मात्रा बहुत अधिक होती है और इस
उर्जा को ग्रहण कर चाँद और तेजी से घूमता है, इतना तेज की वह धीरे-धीरे हमसे दूर
जाता जा रहा है. होता यूं है कि ज्वार की वजह से धरती पर जो द्रव्य (समुद्र का
पानी खासतौर से) ऊपर उठता है, वह चाँद को धरती की ओर और तेजी से खींचता है
(क्योंकि इस स्थिति में उस उठे हुए द्रव्य की वजह से उस स्थान पर पृथ्वी और चाँद
की दूरी थोड़ी कम हो जाती है). उस पर पड़ने वाले इस अतिरिक्त बल से चन्द्रमा का
घूर्णन बढ़ता जाता है और तेज रफ़्तार से घूमता यह चाँद लम्बी दूरी तय करने लगता है
यानि इसका परिक्रमा पथ धीरे-धीरे हर ज्वार के कारण बढ़ता चला जाता है. वैज्ञानिकों
ने हाल में शुद्धता से जब पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच की दूरी को मापा तो पता चला
की चन्द्रमा हर वर्ष हमसे 1.5 इन्च दूर जा रहा है.
ज्वार की वजह से समुद्र के किनारे एकत्र रेत और गाद के जीवाश्म
संरचनाओं का अध्ययन एरिज़ोना विश्वविद्यालय के चार्ल्स सॉनेट ने किया और इस प्रभाव
का अध्ययन करने का प्रयास किया. इसी दौरान
गोडार्ट स्पेस सेण्टर के रिचर्ड रे ने गत माह नेचर पत्रिका में अपना एक शोध
प्रकाशित किया. इस शोध के अनुसार किसी ग्रह के उपग्रह के परिक्रमा पथ में आने वाला
परिवर्तन ग्रह पर ज्वार को विकृत करता है. यह विकृति जल-वायु-भूमि तीनों पर पड़ती
है.अपने अध्ययन में उन्होंने पृथ्वी की संरचना में इस वजह से होने वाले परिवर्तन
के बारे में बताया. पूर्ण अध्ययन ने धरती और चाँद के करोड़ों साल पुराने रिश्ते पर
एक नया प्रकाश डाला.
पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के अनुसार आज से 90 करोड़ वर्ष
पूर्व धरती पर एक दिन केवल 18.2 घंटे का हुआ करता था. लगातार ज्वार की घटना और
पृथ्वी द्वारा चाँद को प्रदान की गयी उर्जा के परिणामस्वरूप उसके परिक्रमा पथ में
वृद्धि की वजह से धरती की अपने अक्ष पर घूर्णन गति कमतर होती गयी और अब उसे 24
घंटे लगते है एक घूर्णन पूर्ण करने में. भला ये क्या बात हुयी – वैज्ञानिक इसे इस
तरह समझाते हैं कि धरती एक घुमते हुए स्केटर की तरह व्यवहार कर रही है जो अपनी
बाहें फैलाने के दौरान अपनी गति कम कर लेती है. ठीक ऐसे ही ज्वार के समय धरती की
बाहें फैली हुयी होती हैं क्यूंकि इस पर उपस्थित द्रव्य ऊपर/बाहर की ओर गति करते
हैं इस स्थिति में धरती की रफ़्तार कम होती जाती है और इस सिलसिले की वजह से लगातार
धरती अपने धुरी पर धीमी पड़ती जा रही है.
Nice info
ReplyDeleteशुक्रिया आशीष भाई,
Deleteमहीनों बाद किसी ने ब्लॉग पर कमेंट किया. नहीं तो सब कमेंट अब फेसबुक पेज पर ही आते हैं :-)