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नासा की पारिकल्पना में प्लेनेट X |
आप में से कई लोगों ने बुध, शुक्र, मंगल और बृहस्पति को चमकते हुए आसमान में जरुर देखा होगा. ये तो हम सभी जानते हैं कि ग्रहों की अपनी रौशनी नहीं होती और वे अपने सितारे के प्रकाश को परावर्तित करते हैं और इसी वजह से उन्हें देखा जा सकता है; पर क्या हो अगर किसी स्याह ग्रह को अपने सितारे से इतनी कम रौशनी मिल पाए की वो उसे ठीक से परावर्तित न कर सके तो - तब तो उस काले ग्रह को देखना संभव ही नहीं. आश्चर्य की बात है न - और कुछ हद तक असंभव भी लगता है.
पर हमारे कुछ वैज्ञानिकों को इस बात पर पूरा यकीं है कि ऐसा कोई ग्रह है और वो भी और कहीं नहीं हमारे अपने सौर मंडल में. उनका मानना है कि हमारे सौर मंडल के सुदूर किनारे पर कोई बड़ा सा ग्रह चुपचाप छिपकर बैठा है. इस दुनिया के बारे में उनका मानना है कि यह हमारी धरती से तीन गुना अधिक विशाल और दस गुना भारी है जो कि अगर वाकई में हो, तो निर्विवाद रूप से हमारे सौर परिवार का नौंवा ग्रह बन सकता है.
तो जब यह दीखता ही नहीं तो वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाया कैसे? वैज्ञानिकों ने बौने ग्रहों और दुसरे पिंडों के पथ का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि कोई बड़ी सी चीज़ इनके परिक्रमा पथ को प्रभावित कर रही है और यह हो न हो कोई ग्रह ही है.
कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के ग्रेग लौलीन कहते हैं - "अगर हमारे सौर परिवार में कोई और ग्रह है तो फिर वह यही है, और अगर हम सहीं हुए तो यह परिणाम वाकई आश्चर्यचकित कर देने वाला होगा."
प्राचीन काल के बाद से अब तक हमारे सौर परिवार में केवल दो ही असली ग्रह ढूंढें जा सके है, प्रारंभ के सभी ग्रह प्राचीन काल से ही ज्ञात रहे हैं, तो अगर ये सच है तो हमें तीसरा नया ग्रह मिल जाएगा. वैज्ञानिकों को इसके होने पर इसलिए भी यकीं हैं क्योंकि अभी भी सौर मंडल का काफी भाग खोजा जाना बचा है और इसके आखिरी छोर के बारे में तो अभी हमें नगण्य ही मालूम है.
वैसे इसकी दूरी के बारे में वैगानिकों की गणना बेहद दिलचस्प है. उनके अनुसार इसकी अत्यधिक दूरी की वजह से शायद इसको सूर्य की परिक्रमा करने में हजारों साल लगेंगे. अपनी सूर्य से नजदीकी में भी यह सूर्य-पृथ्वी की नजदीकी दूरी से कम से कम 2००-३०० गुणा ज्यादा दूर होगा ही.
इसके सौर-क्षेत्र के अंतिम छोर पर होने के बारे में वैज्ञानिकों का मत है कि यह रहस्यमय ग्रह बृहस्पति और शनि के गुरुत्वाकर्षण की वजह से अपने सुदूर स्थान पर सौपहुँच गया होगा. और यही सबसे विकट स्थिति है. इतनी दूर पर उस ग्रह को सूर्य प्रकाश का बेहद कम भाग मिलता होगा, इसलिए उससे परावर्तित होने वाला सौर प्रकाश इतना कम होगा की बड़े-बड़े दूरबीनों से भी उसे देखा जाना लगभग असंभव ही होगा.
एक दूसरा कारण यह भी है कि आसपास के क्षेत्र में कई सारे पिंड हैं जो तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक चमकदार हैं. उदाहरण के लिए प्लूटो ही इस ग्रह से लगभग दस हजार गुना ज्यादा चमकीला माना जा रहा है. इसलिए ऐसी स्थिति में इसे खोजने का एकमात्र तरीका आस-पास के पिंडों की परिक्रमा पथ की गणना करना ही है. माइकल ब्राउन और कोंस्टेंटीन बेटिजिन के रिसर्च पेपर के अनुसार सुदूर क्षेत्र में कुछ तो ऐसा है जो वहां के पिंडों की गति में बाधा डाल रहा है. इन दोनों अन्वेषकों ने इस ग्रह की संभावना के बारे में पता लगाया जब वे इस क्षेत्र के पास के चट्टानीय पिंडों को देख रहे थे. उन्होंने पाया की ये चट्टान परिक्रमा करते नजर आ रहे थे जो यूँहीं संभव नहीं है. इससे वे इस नतीजे पर पहुंचे कि सौर मंडल का कोई विशालकाय नौंवा ग्रह (प्लूटो अब ग्रह नहीं रहा है तो वर्तमान में सौरमंडल में केवल आठ ग्रह हैं) घने अँधेरे में अदृश्य सा बैठा हुआ है.
वैसे इस रहस्यमय ग्रह के होने की सम्भावना सौ साल से भी अधिक से व्यक्त की जा रही है. और प्लूटो की खोज इसी ग्रह को खोजने की पहल के दौरान हुयी थी. इसका नाम वैज्ञानिकों ने प्लेनेट - एक्स (Planet X) रखा हुआ है. तो देखते हैं क्या वाकई बृहस्पति से भी बड़ा कोई ग्रह हमारे सौर परिवार में हैं, जिससे अभी तक हम अनजान है. अन्तरिक्ष में कुछ भी संभव है...इसलिए आशा कायम रखिये.
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