सुन्दरता और प्यार की देवी वीनस के नाम से नवाजे गए ग्रह शुक्र का आतंरिक ग्रहों में दूसरा स्थान है. सूर्य से लगभग 108,200,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शुक्र ग्रह को प्रागैतिहासिक काल से ही जाना जाता था क्योंकि सूर्य और चन्द्रमा के बाद यही आकाश में सबसे चमकीला पिंड नजर आता था. बुध की ही तरह इसे भी कभी सुबह का तो कभी शाम के तारे के रूप में जाना जाता था.
मैगेलन से प्राप्त इमेगेस के आधार पर शुक्र |
शुक्र एक उपग्रह विहीन ग्रह है. इसका अपने अक्ष पर घूर्णन अत्यंत धीमा है. शुक्र पर एक दिन पृथ्वी के २४३ दिनों के बराबर है. पृथ्वी की इसकी केवल एक ही सतह हमेशा नजर आती है परन्तु यह चन्द्रमा की तरह कलाएं प्रदर्शित करता है.
शुक्र का वातावरण तेज़ाब की तरह है. यह मुख्यतः कार्बोन डाई ऑक्साइड से बना है जिसमे सल्फ्यूरिक अम्ल के बादलों की कई किलोमीटर मोटी परत है. इसके धरातक पर भी सैकड़ों ज्वालामुखियों का पता चला है. इन ज्वालामुखियों से निकली लावा से शुक्र गृह का अधिकाँश भाग ढाका हुआ है. यद्यपि कुछ को छोड़ कर बाकी ज्वालामुखी लाखों वर्ष से शांत हैं. इस सभी कारणों से ग्रीन हाउस प्रभाव की अधिकता के कारण शुक्र का तापमान बुध से लगभग दुगुना है जबकि यह सूर्य से बुध की तुलना में काफी दूर स्थित है.
शुक्र की सतह पर उल्का पात से बने गड्ढे |
शुक्र ने सदा से ही अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को आकर्षित किया है. ऐसा माना जाता रहा था की शुक्र पृथ्वी के सदृश्य होगा और शायद वहां भी जीवन होगा. इसी कारण इस गृह के लिए अनेकों अंतरिक्ष अन्वेषक मिशन चलाये गए थे. परन्तु इन अभियानों ने शुक्र की एक अलग ही तस्वीर पेश की तो प्रेम की नहीं बल्कि क्रोध से तपती धरती की तरह की थी.
मेरीनर २ अपनी कक्षा में |
चुम्बकीय क्षेत्र से रहित यह गृह पूर्णतः निर्जीव है. शायद इसलिए अब वैज्ञानिकों का ध्यान और उम्मीद मंगल गृह पर केन्द्रित है, क्योंकि बढती आबादी के कारण किसी नए निवास की खोज भविष्य की आवश्यकता हो सकती है.
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