चन्द्रमा की ललित कलाएँ किसका मन नहीं लुभातीं. जहाँ एक सौर-मंडल का स्वामी हमारा सूर्य हमेशा गोल नजर आता है, वही चन्द्रमा दिन-प्रति-दिन अपना आकर बदलता नजर आता है. चन्द्रमा का यह घटना-बढ़ना हमेशा एक क्रम में चलते रहता है. जब चन्द्रमा पूर्ण ओझल हो जाता है तब अमावस्या आती है और जब चन्द्रमा अपने सम्पूर्ण स्वरुप में आता है तब पूर्णिमा पड़ती है. पूर्णिमा से अमावस्या तक कृष्ण पक्ष और अमावस्या से पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष रहता है जो कमोबेश 15-15 दिन का होता है. वैसे एक पूर्णिमा से दूसरी पूर्णिमा के बीच लगभग साढ़े उनतीस दिनों का अंतर आता है. चन्द्रमा की आकृति में आने वाले इस परिवर्तन को उसकी ‘कला’ कहते हैं और इसी के आधार पर हमारे पंचांग में चंद्रमास की तिथियाँ तय होती हैं.
तो क्या चन्द्रमा वाकई अपनी आकृति बदलते रहता है? भला ऐसा हो सकता है? नहीं ना? तो आखिर इसका कारण क्या है – चलिए थोड़ा विस्तार से समझते हैं.
तो क्या चन्द्रमा वाकई अपनी आकृति बदलते रहता है? भला ऐसा हो सकता है? नहीं ना? तो आखिर इसका कारण क्या है – चलिए थोड़ा विस्तार से समझते हैं.
इस बात को समझने से पूर्ण यह जानना आवश्यक है कि चाँद की अपनी कोई रोशनी होती नहीं है बल्कि वह तो उस पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी है जो परावर्तित होकर हमें नजर आती है. वरना किसी भी ग्रह या उपग्रह में अपनी रोशनी नहीं होती. जब किसी भी गोल वस्तु पर रोशनी पड़ती है तो उसके आगे का आधा भाग तो प्रकाशित हो उठता है परन्तु पीछे के भाग तक रोशनी नहीं पहुँच पाती और वहां अँधेरा रहता है. हम चन्द्रमा के उसी भाग को देख सकते हैं जिसमे उजाला होता है. परन्तु चन्द्रमा की परिक्रमा के कारण हम हमेशा उस आधे भाग को भी पूरी तरह नहीं देख पाते. यही चन्द्र-परिक्रमा उसकी भिन्न-भिन्न कलाओं का कारण होती है.
ऊपर दिए चित्र में चन्द्रमा की परिक्रमा पथ और धरती से नजर आने वाली कालाएं नजर आ रही हैं. इस चित्र में आप यह भी देख सकते हैं कि पृथ्वी के भी केवल आधे भाग में एक समय प्रकाश पड़ता है. सूर्य का प्रकाश भी पृथ्वी से चन्द्रमा पर उसी प्रकार प्रतिबिंबित होता है, जैसे चन्द्रमा का प्रकाश पृथ्वी पर. आपने देखा होगा की जब चन्द्रमा की केवल एक पतली-सी आकृति ही नजर आती है तब आप उसके काले भाग को भी धुंधला सा देख सकते हैं. यह पृथ्वी द्वारा परावर्तित प्रकाश होता है जो चन्द्रमा के काले भाग पर पड़ रहा होता है. चूँकि इस प्रकाश की तीव्र सूर्य की तुलना में कम होती है इसलिए वह भाग सूर्य के प्रकाश वाले भाग की तुलना में बेहद मंद-कांति लिए होता है.
जो बात हम पृथ्वी से चन्द्रमा के अवलोकन की कर रहे हैं, वही बात चन्द्रमा पर खड़े मानव के लिए पृथ्वी के बारे में भी सच होगी. कहने का मतलब कि वहां से उसे पृथ्वी की कलाएँ नजर आयेंगी – चाहे तो इसे भू-अमावस्या और भू-पूर्णिमा का नाम दिया जा सकता है.
सर बहुत अच्छे से समझाया आपने,लेकिन सर मेरा एक सवाल है कि फिर चंद्रग्रहण वाले दिन चंद्रमा जल्दी जल्दी क्यों घाट बढ़ जाता है
ReplyDeleteAaj chand upar ki taraf se nazar aa rha hai iska kya matlab hai
ReplyDeleteAaj chand uper ki taraf se nazar aa rha h iska kya matlab hai
ReplyDeleteYou are right
ReplyDeleteक्या आज चन्द्रमा सीधा उदय हुआ है
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और ज्ञानवर्धक।
ReplyDelete