Sunday, April 29, 2018

पहला आधुनिक ग्रह - यूरेनस (Uranus) या अरुण

अपने वलय प्रणाली के साथ यूरेनस
लेख का शीर्षक काफी लोगों को थोड़ा अजीब सा लगा होगा – ये पहला आधुनिक ग्रह आखिर है क्या बला!!! चलिए इसी बारे में बात की शुरुआत करते हैं – यूरेनस (Uranus) या अरुण के पहले के हमारे सभी सौरमंडल के साथी ग्रह (बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि) प्राचीन काल से ही हमें ज्ञात रहे. वैसे तो यूरेनस को भी नग्न आखों से देखा जाता है परन्तु इसकी रोशनी बाकी ग्रहों से इतनी कम होती है कि हमारे पूर्वजों ने इसे दूर स्थित कोई तारा ही समझा था. वो तो 13 मार्च (मेरे जन्मदिवस पर :-)) 1781 को विलियम हर्शेल (William Herschel)नामक खगोलशास्त्री ने इसकी खोज शक्तिशाली दूरबीन से की और इसे ग्रह का दर्जा पाने का मौका मिला. यह दूरबीन से खोजा गया पहला ग्रह था – यानि पहला आधुनिक ग्रह. सरल सी बात...

यूरेनस या अरुण हमारे हमारे सितारे सूर्य से दूरी के क्रम में सातवाँ ग्रह है. गैसीय दानव ग्रहों में वर्गीकृत यह ग्रह हमारे धरती से 63 गुणा बड़ा (सौरमंडल में तीसरा सबसे बड़ा ग्रह) है परन्तु वजन में केवल 14.5 गुणा क्यूंकि लगभग पूरा ग्रह ही गैसों से बना हुआ है. कठोर तथा द्रवीय संरचना के नाम पर इसमें पानी, जमी हुयी अमोनिया और मीथेन की बर्फ है. मतलब बर्फ का खजाना – बस खाने लायक नहीं; इसलिए यह सौरमंडल में सबसे ठंडा ग्रह है, इतना ठंडा की इसका तापमान -224 सेंटीग्रेड तक चला जाता है. इसके इतना ठंडा (नेप्चून से भी ज्यादा) होने के रहस्य का स्पष्तः कारण अज्ञात है. कुछ परिकल्पनाएं है जो कहती हैं की शायद अपने निर्माण काल में किसी बड़े पिंड से इसकी टक्कर हुयी होगी जिससे इसके निर्माण के समय उपस्थित उष्मा अन्तरिक्ष में निष्काषित हो गयी होगी. ये भी संभावना है कि बाह्य वायुमंडल में कोई अवरोध सूर्य की उष्मा को अन्दर आने से रोक देता हो. या शायद कोई अवरोध कोर की गर्मी को धरातल पर आने से रोक रहा हो. 

गैसीय दानव ग्रह यूरेनस के केंद्र में ही चट्टान होने की प्रबल सम्भावना है, अन्यथा पूरा ग्रह ही बादलों और बर्फो से बना हुआ है. वैज्ञानिकों ने जो ग्रहीय संरचना का अनुमानित मॉडल तैयार किया है उसके अनुसार ग्रह में तीन अलग-अलग परते हैं. लोहा-निकिल-सिलिकेट का चट्टानी कोर इसके केंद्र में, मध्य में बर्फ और बाह्य भाग में गैसें. मध्य भाग में बर्फ के साथ जल वाष्प भी है जिसमें उच्च विद्युत चालकता भी है. अमोनिया की प्रचुर मात्रा की वजह से इसे ‘अमोनिया सागर’ भी कहा जाता है.  


यूरेनस, सूर्य से लगभग 3 अरब किलोमीटर (अधिकतम दूरी) और 2.74 अरब किलोमीटर (न्यूनतम दूरी) पर अंडाकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करता है. इतनी लम्बी परिक्रमा कक्षा eके कारण इसे हमारे 84 वर्षों के बराबर समय लगता है. इसकी परिक्रमा पथ की सटीक गणना के लिए वैज्ञानिक अध्ययन कर ही रहे थे कि एक शानदार खोज हो गयी. हुआ ऐसा की समय के साथ ग्रह की कक्षा अनुमान से मेल खाते नहीं मिल पा रही थी तब जॉन सी. एडम्स (John C. Adams) ने किसी नए ग्रह की इसकी कक्षा के बीच होने की सम्भावना व्यक्त की जिसके गुरुत्वाकर्षण से यह विसंगतियां आ रही थी होंगी. और आखिरकार नेपच्यून (Neptune) भी मिल ही गया, बिलकुल व
हाँ, जहाँ इसकी सम्भावना व्यक्त की गयी थी.

एक और शानदार बात – एक सौर परिक्रमा के 84 पृथ्वी वर्षों में इसके ध्रुवों पर केवल एक बार दिन होता है और एक बार रात यानि 42 पृथ्वी वर्ष लगातार दिन और फिर लगातार रात. इसका कारण है कि यूरेनस की घूर्णन धुरी सौरमंडल के तल के समानांतर है जिससे आधी परिक्रमा में एक ध्रुव सूर्य की ओर रहता है और अगले भाग में दूसरा ध्रुव.
यूरेनस के पाँच सबसे प्रमुख प्राकृतिक उपग्रह
अंत में बात करते हैं यूरेनस के ज्ञात प्राकृतिक उपग्रहों की – यूरेनस के वर्तमान तक कुल 27 उपग्रह आधिकारि तौर पर ज्ञात हैं और इन सभी के नामकरण अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध पात्रों (खासकर शेक्सपियर) के ऊपर किये गए हैं, जैसे – मिरांडा (Miranda)  और  एरियल (Ariel) - द टेम्पेस्ट (The Tempest) से, टाइटेनिया (Titania) और ओबेरोन (Oberon) - अ मिडसमर नाईट’स ड्रीम्स (A Midsummer Night's Dreams) से. कुछ उपग्रहों के नाम अलेग्जेंडर पोप (Alexander Pope) की कृतियों से भी लिए गए हैं जैसे अम्ब्रिअल (Umbrial). इनमें टाइटेनिया सबसे बड़ा और सौरमंडल में आठंवा सबसे बड़ा चाँद है. 

यूरेनस बहुत सुदूर स्थित है. दुर्भाग्यवश या ये कहें कि व्यावहारिक दिक्कतों की वजह से यूरेनस के लिए अभियान नहीं हो पाए हैं. अभी तक सबसे नजदीक वायेजर 2 (Voyager 2) ही पहुँच पाया है, जिसने जनवरी 1986 में इसके चाँद ओबेरोन के चित्र भेजे थे. इसके बाद यूरेनस या इसकी प्रणाली अछूती ही रह गयी है.

भविष्य में नयी जानकारियों की आशाओं के साथ....

Thursday, April 12, 2018

वलयों से सुशोभित दुनिया – शनि

 
शनि ग्रह अपने वलयों के साथ (Saturn with its Rings)
भले ही शुक्र ग्रह (Venus) को ‘सौन्दर्य की देवी’ का नाम दिया गया हो, पर अपने अद्भुत वलयों से सुशोभित शनि ग्रह (Saturn), सुन्दरता में अद्वितीय है. (हमारी धरती-पृथ्वी को छोड़कर). हमारे पौराणिक गाथाओं से युक्त देश में इसका नाम सूर्यपुत्र शनिदेव के नाम पर रखा गया है. बाह्य ग्रहों (Outer Planets) में शामिल शनि ग्रह एक गैसीय दानव (Gas Giant) ग्रह है, जो सूर्य से दूरी के क्रम में छठवां ग्रह है. यह हमारे सौरमंडल में बृहस्पति (Jupiter) के बाद दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है. 

शनि, सूर्य से लगभग 1.4 अरब किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसे सूर्य की एक परिक्रमा करने में 10759 पृथ्वी दिवस लग जाते हैं याने शनि पर एक वर्ष (सूर्य की एक परिक्रमा) हमारे 29.5 वर्षों के बराबर होती है – उस हिसाब से हमारी औसत आयु मात्र 2 वर्ष है शनि ग्रह पर. उपसौर (Perihelion) और अपसौर (Aphelion)में लगभग 15.5 करोड़ किलोमीटर का अंतर होता है याने शनि के परिक्रमण मार्ग में ग्रह की सूर्य से क्रमशः निकटतम और अधिकतम दूरी होती है.  

शनि की अद्भुत वलय प्रणाली (Ring System) इसे सौरमंडल में अनुपम स्थान प्रदान करती है. शनि के यह वलय वास्तव में वलयों का एक समूह है जिसमें नौ मुख्य वलय और तीन अपूर्ण वलय शामिल हैं. ये वलय मुख्य रूप से अन्तरिक्षीय चट्टानों के टुकड़ों, धूल और 93%  तक बर्फ से निर्मित हैं. वलयों की औसत मोटाई 20 मीटर तक है. वैसे वलय प्रणाली बाकी बाह्य ग्रहों या गैसीय दानवों में भी हैं, परन्तु शनि के वलय सुस्पष्ट होने की वजह से विशिष्ट हैं. शनि के इन वलयों की उत्पत्ति के लिए मुख्य रूप से दो संभावनाएं मानी जाती हैं – सबसे प्रचलित मान्यता यह है की यह शनि का कोई बड़ा सा चाँद था जो नष्ट हो गया, परन्तु इसके अवशेष शनि से दूर ना जा पाए और गुरुत्व में बंधकर वह इसके इर्द-गिर्द एकत्र हो गए. दूसरी संभावना यह है कि जिन निहारिकीय सामग्रियों से शनि का निर्माण हुआ है ये उसकी बची हुयी मात्रा है जो किसी कारण ग्रह का रूप न बन सकी और वलयाकार आकृति में ढलकर शनि का हिस्सा बनी रह  गयी. परन्तु कुछ गणनाएं दूसरी मान्यता को ख़ारिज करती हैं जो शनि और इन वलयों की उम्र में अंतर पर आधारित हैं. 
टाइटन (Titan )

उपग्रहों के मामले में भी शनि बेहद धनी है. अभी तक इसके कुल 62 चन्द्रमा स्पष्टतः खोजे जा चुके हैं, जिनमे से 53 का  आधिकारिक तौर पर नामकरण भी किया जा चुका  है. वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि वलयों के बीच अनेक चन्द्रमा और होंगे, परन्तु बढती संख्या के कारण उन्हें वलय का भाग मान लिया जाना ज्यादा उचित होगा. वैसे शनि के इस विशाल उपग्रह प्रणाली में टाइटन (Titan) भी है जो कि शनि का सबसे बड़ा और सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा चाँद है. टाइटन तो बुध ग्रह (Mercury) से भी बड़ा है और एकमात्र चाँद है जिसका अपना वायुमंडल है; जिसकी वजह से यह कभी कभी एक लघु ग्रह होने का आभास भी देता है. 

शनि का बाह्य भाग मुख्य रूप से गैसों का बना है जिसकी वजह से इस गैस दानव के रूप में वर्गीकृत किया गया है, परन्तु इसका आतंरिक कोर  लोहा, निकिल और सिलिकॉन-ऑक्सीजन यौगिकों से निर्मित चट्टानों से बनी है जो हाइड्रोजन की एक मोटी परत से घिरा हुआ है. अमोनिया के क्रिस्टलों से युक्त उपरी वायुमंडल की वजह से यह पीला वर्ण प्रदर्शित करता है. यह ग्रह ध्रुवों पर चपटा और भूमध्य रेखा के समीप कुछ उभरा हुआ है, मानों किसी ने नर्म गेंद को ऊपर नीचे से पकड़ कर दबा दिया हो. पर ये गेंद, हमारे गोले से 318 गुणा भारी है. 

जब वायेजर (Voyager) अन्तरिक्ष यान शनि के पास से गुजरे तो उन्होंने एक सुन्दर षटकोणीय बादलों की संरचना देखी जिसमें प्रत्येक सीधी भुजा 13,८०० किलोमीटर लम्बी थी, एक तरह से देखें तो इतनी बड़ी भुजा कि पृथ्वी के आर-पार निकल जाए.  वहीं दक्षिणी ध्रुव में अरबों वर्षों से जारी एक तेज तूफ़ान भी देखा गया है. 

शनि का वर्णन प्राचीनतम सभ्यताओं में भी मिलता है, क्योंकि अपने विशाल आकार के कारण यह नग्न आखों से एक सितारे के रूप में नजर आता है. प्राचीन काल से ही विश्व की विभिन्न पौराणिक गाथाओं और किवदंतियों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है. प्राचीन रोमन कथाओं में कृषि के देवता सैटर्न (Saturn) के ऊपर इस ग्रह का नामकरण किया गया है जो कि युनान के देवता क्रोनस के समकक्ष है. वहीं भारतीय सभ्यता में इसे सूर्य के प्रतापी पुत्र शनिदेव के रूप में मानकर इसकी पूजा की जाती है. 

जब दूरबीन (Telescope) का आविष्कार हुआ तो गलीलियो (Galileo Galilie) ने इस ग्रह को देखा था, परन्तु उन्होंने इसके वलयों को दो नए चाँद मान लिया था. बाद में जब क्रिस्चियन होगंस (Christiaan Huygens) ने ज्यादा शक्तिशाली दूरबीन से इसे देखा तब इस ग्रह की यह खूबसूरत संरचना दुनिया के सामने आई. उन्होंने ही सौरमंडल के सबसे चर्चित चाँद टाइटन की भी खोज की. बाद में कैसिनी (Cassini) ने चार और चन्द्रमा खोज निकाले. आज तो यह संख्या काफी बड़ी हो गयी है और अनेक नए चंद्रमाओं की उपस्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता. 

भू-प्रेक्षणों से अलग, अन्तरिक्ष अभियानों में, सर्वप्रथम पायनियर-11 (Pioneer-11) ने , 1979 में शनि का पहला फ्लाई-बाई (ग्रह के नजदीक से गुजरना परन्तु कक्षा में प्रवेश न करना) किया. उसने धरातलीय तस्वीरों के साथ वलयों का अध्ययन भी किया. अगले ही वर्ष सफलतम वायेजर श्रृंखला (Voyager Series of Dual Space-Crafts) के प्रथम उपग्रह ने ग्रह, वलयों और उपग्रहों की सुस्पष्ट तसवीरें और आंकड़े प्रेषित किये. वायेजर 2 ने भी अगले वर्ष जाकर अपना योगदान दिया. 

शनि ग्रह का पहला वृहद् अन्तरिक्षीय अभियान नासा, जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL- Jet Propulsion Laboratory), यूरोपीय अन्तरिक्ष संस्था (ESA - European Space Agency) और इटली की अन्तरिक्ष संस्था (ASI – Italian Space Agency) ने कैसिनी- होगंस (Cassini-Huygens) अन्तरिक्ष यान के रूप में शुरू किया जिसका नामकरण  शनि के प्रारंभिक दोनों आधुनिक प्रेक्षकों के सम्मान में किया गया. 1 जुलाई 2004 को यह यान शनि की कक्षा में प्रविष्ट हुआ. इस अभियान में शनि, वलयों और उसके चंद्रमाओं विशेषकर टाइटन (Titan) और फ़ोबे (Phoebe) का गहराई से अध्ययन किया और अत्यंत स्पष्ट चित्रों को धरती पर प्रेषित किया. 14 जनवरी 2005 को यह टाइटन की सतह पर उतरने में सफल हुआ. शनि पर विद्युत् के विशाल भण्डार का भी पता चला. इन खोजों से शनि के उपग्रहों पर विशाल मात्रा में बर्फ की मौजूदगी का पता चला और इसका उपग्रह एन्सेलेडस (Enceladus), पृथ्वी के बाद सर्वाधिक जीवन की संभावनाओं वाले पिंड के रूप में उभरा. टाइटन में कैस्पियन सागर जितने बड़े हाइड्रो-कार्बन समुद्र का पता चला. 

भविष्य में शनि ग्रह की नयी खोजों के साथ यह रहस्यमय ग्रह और उससे भी ज्यादा कौतूहलपूर्ण चंद्रमाओं की यह दुनिया संसार को आश्चर्यचकित करती रहेगी...इस विश्वास के साथ....